न कृषि विश्वविद्यालय का दर्जा मिला , न ही माडल स्कूल बनाया
देवरिया : सबको निश्शुल्क शिक्षा देने की सरकारी योजनाओं को सुस्ती का रोग लग गया है। उधार की किताबों क
देवरिया : सबको निश्शुल्क शिक्षा देने की सरकारी योजनाओं को सुस्ती का रोग लग गया है। उधार की किताबों के सहारे परिषदीय विद्यालयों में नए सत्र की शुरुआत हो गई, वहीं करीब डेढ़ माह गुजरने के बाद भी विभाग ड्रेस के लिए शासन के फरमान का इंतजार कर रहा है। राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के अंतर्गत जिले में बनने वाले माडल स्कूल अभी भूमि की बाट जोह रहे हैं, तो संसाधनों के अभाव में जिले में उच्च शिक्षा दम तोड़ रही है। तकनीकी शिक्षा का हाल भी इससे इतर नहीं है। यहां छात्र बिना तकनीक के तकनीकी शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर हैं।
शुरुआत करते हैं शासन की महत्वाकांक्षी योजना मिड-डे-मील से। योजना के तहत स्कूलों को न तो बीते वित्तीय वर्ष में गैस कनेक्शन मिले और न ही इस वित्तीय वर्ष में मिलने के आसार दिख रहे हैं, जबकि सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि बच्चों को लकड़ी के चूल्हे पर बना भोजन नहीं देना है। वर्तमान में जिले में योजना से आच्छादित कुल 2877 विद्यालयों में से अभी भी 400 स्कूलों में रसोइए लकड़ी का चूल्हा फूंक रहे हैं। यह हाल तब है, जबकि सरकार ने साफ हिदायत दी थी कि बच्चों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए स्कूलों में गैस कनेक्शन उपलब्ध करा दिए जाएं, ताकि भोजन बनाने के लिए रसोइयों को लकड़ी का चूल्हा न फूंकना पड़े।
बात यहीं खत्म नहीं होती। तमाम सख्ती के बाद न तो विद्यालयों में मीनू का पालन हो रहा है और न ही बच्चों को गुणवत्तायुक्त भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। उच्चाधिकारियों के निर्देश पर जांच करने के लिए औचक निरीक्षण तो होता है, लेकिन बिना किसी कार्रवाई के अधिकारी ड्यूटी के नाम पर कोरम पूरा कर लेते हैं।
सरकार ने शिक्षामित्रों का समायोजन कर सहायक शिक्षक बनाकर पीठ तो थपथपा ली, लेकिन समायोजित शिक्षकों को नियमित वेतन को लेकर तमाम पापड़ बेलने पड़ रहे हैं, जिससे वे बच्चों को पढ़ाने में कम रुचि दिखा रहे हैं।
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ड्रेस के लिए शासन के निर्देश का इंतजार
सर्वशिक्षा अभियान के तहत जनपद के दर्जनों विद्यालय के बच्चों को ड्रेस व विभाग को शासन के निर्देश का इंतजार है। यह हाल तब है जबकि 1 अप्रैल से नए सत्र का आरंभ होकर 1 माह 20 दिन बीत चुके हैं।
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भूमि चयन में फंसा माडल स्कूल
शैक्षिक रूप से पिछड़े ब्लाकों में माडल स्कूल खोलने की योजना को जमीन की तलाश है। शासन की पहल पर विभाग चयनित ब्लाकों में भूमि की तलाश तो कर रहा है, पर यह पूरी कब होगी इसको लेकर अनिश्चितता बरकरार है। वित्तीय वर्ष-2010-11 की इस योजना को शुरू हुए चार साल बीत चुके। देसही देवरिया के टीलाटाली में 45 लाख की लागत से बनकर तैयार भी हो चुका है, लेकिन विभागीय उदासीनता के कारण इस सत्र में भी न तो शिक्षकों की नियुक्ति हुई और न ही बच्चों का नामांकन ही होने के आसार दिख रहे हैं। केंद्रीय विद्यालयों की तर्ज पर खुलने वाले इन विद्यालयों में कक्षा 6-12 तक की पढ़ाई होगी। विद्यालय की स्थापना में आने वाले खर्च का 75 फीसद केंद्र व 25 फीसद प्रदेश सरकार वहन करेगी।
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संसाधनों के अभाव में दम तोड़ रही उच्च शिक्षा
संसाधनों के अभाव में जनपद में उच्च व तकनीकी शिक्षा दम तोड़ रही है। उत्तीर्ण छात्रों की तुलना में डिग्री कालेजों में सीटें कम होने से यहां के छात्र जहां गैरजनपद के कालेजों या वित्तविहीन कालेजों में प्रवेश लेने को मजबूर हैं, वहीं तकनीकी संस्थानों में छात्र-छात्राएं बिना तकनीक के शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
नए सत्र में कालेजों में स्नातक कक्षाओं में छात्रों के प्रवेश की बात करें तो इसको लेकर हर साल मारामारी मचती है। सरकारी महाविद्यालयों में छात्रों के प्रवेश में अवरोध का कारण सीटें कम होना है। लगभग हर डिग्री कालेज में पांच सौ सीटें हैं, जबकि आवेदन करने वाले छात्रों की संख्या सीट की तुलना में काफी अधिक।
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तकनीकी शिक्षा के लिए संसाधन का इंतजार
तकनीकी संस्थानों के रूप में जिले में चार आइटीआइ व एक पालीटेक्निक कालेज संचालित हैं। देवरिया सदर, सलेमपुर, गौरीबाजार व बैतालपुर में संचालित जहां आइटीआइ संस्थानों में न तो पर्याप्त शिक्षक ही मौजूद हैं और न ही संसाधन। प्रयोगशालाओं की स्थिति जर्जर है। जनपद में चार संस्थान होने के बावजूद यहां के छात्र बाहर के अच्छे संस्थानों में नामांकन कराने में अधिक रुचि लेते हैं। हर बार व्यवस्था में सुधार की बात होती पर नतीजा आज भी सिफर है।
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बीआरडी को कृषि विवि बनाने का सपना अधूरा
पूर्वांचल का सबसे समृद्ध व पुराना महाविद्यालय बीआरडी पीजी कालेज को कृषि विश्वविद्यालय का दर्जा दिलाने का प्रस्ताव पिछले दस वर्षों से ठंडे बस्ते में हैं। वर्ष-2002 से 2007 के बीच जब इसकी मांग उठी थी, उस समय सूबे के मुख्यमंत्री मुलायम ¨सह यादव थे। मामला आगे बढ़ा फाइलें भी लक्ष्य के करीब पहुंची। घोषणा होने वाली थी, तभी ऐन वक्त पर सरकार बदल गई और पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला गया। तब से अब तक स्थिति यथावत है।
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ये हैं गतिरोध
-सत्यापन के इंतजार में लटका निश्शुल्क पुस्तकों का वितरण
-शिक्षकों की सेवानिवृत्ति 30 जून को, विभागीय निर्देश न मिलने से अधर में समायोजन
-काउंसि¨लग के एक वर्ष बाद भी जिले में 522 विज्ञान-गणित शिक्षकों की नहीं हुई नियुक्ति
-तमाम प्रयासों के बाद भी 212 विद्यालयों में नहीं लगे हैंडपंप
-रसोई गैस कनेक्शन की राह देख रहे जनपद के चार सौ अधिक विद्यालय
-शिक्षकों की कमी से जूझ रहे जनपद में संचालित तेरह उच्चीकृत पूर्व माध्यमिक विद्यालय
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''बीआरडी पीजी कालेज को कृषि विवि का दर्जा दिलाने के लिए सबके सहयोग से सार्थक प्रयास की जरूरत है। कृषि विवि खुलने से जहां पूर्वांचल में नए-नए प्रोजेक्ट आएंगे वहीं शोध होने से यहां के छात्र राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बना सकेंगे। रही बात स्नातक कक्षाओं में छात्रों के प्रवेश की तो यह दिक्कत छात्रों की संख्या के सापेक्ष सीटें कम होने से है। हालांकि मेधावी छात्र कम सीटें होने के बावजूद अच्छे संस्थानों में अपनी जगह बना लेते हैं।''
-डा.एके राय
प्राचार्य, बीआरडी पीजी कालेज
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''बच्चों को बेहतर शिक्षा देने को लेकर विभाग गंभीर है। इसको लेकर जो भी जरूरी उपाय हैं उसे करने की कोशिश की जा रही है। शिक्षकों व अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि योजनाओं का सफल क्रियान्वयन कराएं, ताकि शासन की मंशा पूरी हो सके। अब तक 60 फीसद निश्शुल्क पाठ्य पुस्तकें आ चुकी हैं। जल्द ही सत्यापन कराकर छात्रों में वितरण करा दिया जाएगा।''
-मनोज कुमार मिश्र
जिला बेसिक शिक्षाधिकारी
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