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यूनुस व कलीमुद्दीन की जोड़ी चित्रकूट के रामायण मेले में निभाती है अहम भूमिका, सामाजिक सौहार्द की मिसाल

यूनुस खान मेला कमेटी के सदस्य भी हैं। उनके कंधे पर अतिथियों की सेवा से लेकर आर्थिक जिम्मेदारी रहती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 15 Nov 2019 10:55 AM (IST)Updated: Fri, 15 Nov 2019 11:53 AM (IST)
यूनुस व कलीमुद्दीन की जोड़ी चित्रकूट के रामायण मेले में निभाती है अहम भूमिका, सामाजिक सौहार्द की मिसाल

हेमराज कश्यप, चित्रकूट। चित्रकूट में हर साल फरवरी में आयोजित होने वाला पांच दिवसीय राष्ट्रीय रामायण मेला सामाजिक सौहार्द की मिसाल भी है। इसमें हिंदुओं के साथ-साथ मुस्लिम भी पांच दिन राममय दिखते हैं। इस मेले में दो मुस्लिम तैयारियों से लेकर कलाकारों के स्वागत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह दोनों शख्स हैं यूनुस खान और कलीमुद्दीन बेग। राष्ट्रीय रामायण मेले की परिकल्पना प्रख्यात सामाजिक चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया ने तैयार की थी, लेकिन इसे सच्चे अर्थों में कर्वी नगर पालिका परिषद के चेयरमैन रहे गोपाल कृष्ण करवरिया ने 1973 में सीतापुर में मूर्त रूप दिया था।

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चित्रकूट के कर्वी निवासी करवरिया के साथ मोहल्ले के तमाम मुस्लिम भी मेले के अंग बनकर साथ खड़े हुए। कुछ अर्से में यह गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल बन गया। कर्वी निवासी यूनुस और कलीमुद्दीन मेले को जीवंत बनाने में मदद करते हैं। राष्ट्रीय रामायण मेला संत समागम व धार्मिक अनुष्ठान है। देश के कई संत, महंत और मनीषी रामायण पर व्याख्यान प्रस्तुत करते हैं। सांस्कृतिक दल भगवान राम के चरित्र पर कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं तो कई प्रदेशों की रामलीला व रासलीला का भी मंचन होता है। इस दौरान प्रदर्शनी भी लगती है।

कारोबार और रोजगार का सबब भी

रामायण मेला हथकरघा, पशु, दस्तकारी, फर्नीचर, कालीन, खादी ग्रामोद्योग के उत्पादों समेत कई वस्तुओं के कारोबार और सैकड़ों रोजगार का सबब भी है। यहां बनारस की साड़ियां भी मिलती हैं तो भदोही का कालीन भी। हैंडलूम के उत्पाद आते हैं तो नक्काशीदार पीतल के बरतन भी। सरकार आयोजन में करीब 12-13 लाख रुपये की मदद करती है। आयोजन का खर्च करीब 40 लाख रुपये है, जिसे मेला कमेटी वार्षिक आय और मेले में दुकान से मिले किराये से पूरा करती है। मेले में करीब एक करोड़ रुपये का कारोबार होता है।

मंच सजाते हैं कलीमुद्दीन

45 वर्षीय कलीमुद्दीन बेग जल संस्थान से सेवानिवृत्त हैं। रामायण मेले में उनकी मुख्य भूमिका मंच सच्जा की है। वह कहते हैं कि मंच सजाने में मन इतना प्रसन्न होता है कि बयां नहीं कर सकते। जिस मंच पर भगवान राम का पांच दिन गुणगान और उनकी लीलाओं का मंचन होता है, उसे सजाना जरूर पूर्व जन्मों का सुफल जैसा है। वह चाहते हैं कि अंतिम सांस तक यह काम करते रहें।

यूनुस के पास होती है अतिथियों के सत्कार की जिम्मेदारी

यूनुस खान मेला कमेटी के सदस्य भी हैं। उनके कंधे पर अतिथियों की सेवा से लेकर आर्थिक जिम्मेदारी रहती है। 65 वर्षीय यूनुस कहते हैं कि रामायण मेले में काम करने पर विशेष अनुभूति होती है। प्रत्येक वर्ष फरवरी में होने वाले मेले के आयोजन का समय करीब आता है तो वह खुद-ब-खुद पहुंच जाते हैं।

यूनुस व कलीमुद्दीन की जोड़ी रामायण मेले में अहम भूमिका निभाती है। इससे मेला हिंदू- मुस्लिम एकता के लिए देश-दुनिया में अलग पहचान रखता है।

-राजेश करवरिया, कार्यकारी अध्यक्ष, राष्ट्रीय रामायण मेला, चित्रकूट


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