सियासत के लंबे सफर को जनता की पीठ पर सवार हैं पाíटयां
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जासं, सकलडीहा (चंदौली) : नगाड़े की धमक कोस-दो कोस तक सुनाई देती है। लेकिन जब वह फटता है तो अंदर पोल ही पोल दिखता है। कलुआ सुबहे से भड़का हुआ है, सच्चाई सबके पता हव। ओकर ढिढोरा पिटले क जरूरत ना बा। क्षेत्र- जवार में विकास के नाम पर चार साल जऊन रोपला, ऊहे कटबा। जनता मूरख ना है। पुरान दुलहिया के मुंह दिखाई में नइकी नियर कुछ नया त ना मिली। चौधरी चाचा की देहरी पर पांव रखते ही उसके अंदर का गुबार भरभरा कर बाहर निकल आया। चौधरी चाचा को भी समझते देर नहीं लगी। कुछ खास बात है जो कलुआ की खोपड़ी सुबह-सबेरे ही उलट गई है।
चौधरी चाचा ने गुड़गुड़ी मुंह से निकाली और पूछ बैठे कि बेटा माजरा क्या है। सबेरे-सबेरे घूरे पर पड़ी मक्खी की तरह भनभना क्यों रहे हो। कलुआ फट पड़ा, घुरहुआ सुबहिये सघन तिराहे पर घरभरन पनवाड़ी की गुमटी पर साइकिल लिए मिला रहा। बोला, चुनाव आ गयल। हर पार्टी अब साइकिल रैली निकाली। ठेका ह 20 गो साइकिल सवार फिट किये हैं। भिनसहरे गांव-गांव घूम के पार्टी क उपलब्धि गिनावे के ह, अऊर संझा होत पइसा भजा के घरे लौट आना ह। सीजन ह, तोहूं कमा ले। कलुआ का गुस्सा बेकाबू है। ई ठीक ना बा चाचा। जनता क भला करबा त ऊंची मीनार पे चढ़ के ढिढोरा पीटे के जरूरत ना पड़ी।
चौधरी चाचा खामोश होकर कलुआ की बात सुनते रहे। सोचने लगे भोले-भाले लोगों की भाषा सियासत की भाषा से कितनी अलग होती है। कलुआ जैसा अनपढ़ और बकलोल भी सियासत की सतरंजी बिसात का मतलब अब बखूबी समझने लगा है। अब सियासत करने वाले पैंतरे बदलने से बाज न आए तो गलती उनकी।
कलुआ मानो आज सब उलटने वाला था। गमछा को दो बार माथे पर लपेट कर बोला, कल्हे सइकिल चलावे वालन के मीटिग रहल। बुझावन संग हमहूं चल गए रहे। गठबंधन के बाद भी सभे परेशान रहे की नीली झंडी वाले कार्यकर्ता मीटिग में नहीं आए। एके लेके दुन्नो पार्टी के नेतवन चों-चों करत रहलन। जब साथ बइठ के बतकुच्चन ना कर सकते तो साथ में इलेक्सन का लड़िहैं। तब त बनरन के तकझक में बिलारी बाजी मार के जाई। कलुआ की दिमागी कसरत के आगे चौधरी चाचा भी गलती से धुंआ निगल गए।