सड़कों के राजा बजा रहे हिदी का बाजा
यादवेन्द्र सिंह, चंदौली : किसी ने ठीक ही कहा है कि हिदी राजभाषा है, अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय भाषा व सं
यादवेन्द्र सिंह, चंदौली : किसी ने ठीक ही कहा है कि हिदी राजभाषा है, अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय भाषा व संस्कृत एक देवभाषा है। ज्ञान के धरातल पर यदि हम अपनी राजभाषा में पारंगत नहीं हो सकते जिसकी आबोहवा में हमने सांस लेना सीखा है तो क्या अंतरराष्ट्रीय या देवभाषा खाक बोल या लिख पाएंगे।
जी हां, धरातल पर देखें तो 20 से 40 लाख के ट्रक रखने वाले 95 फीसद मालिक हिदी के भसुर बने बैठे हैं और अपने ट्रकों के पीछे आशीर्वाद को आर्शीवाद लिखवाए 56 इंच का सीना लिए घूम रहे हैं और खुद को सड़कों के अघोषित राजा के विभूषण से नवाजते भी हैं। यह सच है कि इनकी लिखावट की तासीर में बहुत बड़े बड़े संदेश भी समाहित होते हैं जिसे पढ़कर आदमी एक बार सोचने को मजबूर हो जाता है। जैसे सोचकर सोचो साथ क्या जाएगा। तमाम आस्तिक मालिक मां का आशीर्वाद लिखना चाहते हैं लेकिन आशीर्वाद की जगह आर्शीवाद लिखवा लेते हैं। कुछ लोग दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे लिख कर अपने व्यक्तित्व में निखार लाते हैं। वहीं आडंबर में विश्वास रखने वाले लोग बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला या देखो मगर प्यार से जैसी उक्तियां लिखवाते हैं। जबकि एक वर्ग विशेष के मालिक मादरे वतन लिखवाने में ही गौरवान्वित महसूस करते हैं। यदाकदा ट्रकों पर जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी जैसे श्लोक भी देखने को मिलते हैं इससे उन मालिकों की सोच और समझ के बारे में पता चलता हा कि कहीं ये गलत पेशे में तो नहीं आ गए हैं। क्लर्कों का निर्माण करने वाली हमारी मैकाले की शिक्षा पद्धति तो ट्रकों के पीछे ब्लो हार्न, हार्न प्लीज आदि के रूप में अपना डंका पीट ही रही है। बेशक आज के वैश्विक माहौल में इंग्लिश में फ्लुएंसी जरूर होनी चाहिए और संस्कृत में समझ के साथ हिदी में प्रकांडता झलकनी चाहिए। लेकिन विकास की लाइफ लाइन पर जो भारत की भाषा फर्राटा भर रही है उससे स्पष्ट होता है कि हम अपनी राजभाषा हिदी के प्रति बेहद बेपरवाह हैं। रही बात क्षेत्रीय भाषा भोजपुरी की तो आज की लर्नेड सोसायटी में तो इसे बोलने तक में तथाकथित एजुकेटेड लोग अपनी तौहीनी समझते हैं। गलत कहत होंखीं त बताईं सभे। इनसेट..
इंग्लिश आवश्यकता पर हिदी हमारी अस्मिता
मैं मूलरूप से हरियाणा के सोनीपत का रहने वाला हूं। यह सही है कि इंग्लिश आज की आवश्यक आवश्यकता बन गई है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हिदी हमारी अस्मिता की पहचान है। इसमें इतना लचीलापन है कि सम्पूर्ण भारत में ही नहीं जहां जहां अप्रवासी भारतीय हैं वहां वहां बोली व समझी जाती है। इसीलिए तो अपने देश में यह प्रचलित कहावत है कि 'कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बदले बानी'।
नवनीत सिंह चहल, जिलाधिकारी