पंचायत भवन कह रहे गांव के विकास की कहानी
पंचायती राज व्यवस्था को तमाम प्रयास के बाद भी पंख नहीं लग पा रहा है। लाखों रुपये खर्च कर ग्राम पंचायतों में पंचायत भवन की व्यवस्था की गई लेकिन जिम्मेदार हुक्मरानों की उदासीनता के चलते ये भवन उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहे हैं। कुछ पंचायत भवन अतिक्रमण तो कुछ जर्जर होने के कगार पर पहुंच गए हैं। या फिर यह कहें कि पंचायत भवन कह रहे गांव के विकास की कहानी तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
जासं, चकिया (चंदौली) : पंचायती राज व्यवस्था को तमाम प्रयास के बाद भी पंख नहीं लग पा रहा है। लाखों रुपये खर्च कर ग्राम पंचायतों में पंचायत भवन की व्यवस्था की गई लेकिन, जिम्मेदार हुक्मरानों की उदासीनता के चलते ये भवन उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहे हैं। कुछ पंचायत भवन अतिक्रमण तो कुछ जर्जर होने के कगार पर पहुंच गए हैं। या फिर यह कहें कि पंचायत भवन कह रहे गांव के विकास की कहानी तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
विकास क्षेत्र के 89 ग्राम पंचायत में 64 पंचायतों में पंचायत भवन या मिनी सचिवालय का अभाव है। जमुआ, खरीद, कुदरा समेत दर्जनभर ग्राम पंचायतों में पंचायत भवन अधूरा है। मुड़हुआ दक्षिणी, अकोढ़वा सहित आधा दर्जन गांव में बने पंचायत भवन पर अतिक्रमण है। लगभग 16 लाख रुपए की लागत से बने मिनी सचिवालय की दशा भी कुछ इसी तरह का है। पुरानाडीह, नौडीहा, धनावल कला, गढवा उत्तरी, रघुनाथपुर के मिनी सचिवालय की बदहाली देखते ही बन रही है। निर्माण कार्य के 10 वर्ष बीतने को हैं लेकिन मरम्मत व रंग रोगन का कार्य नहीं किया जा सका है। मिनी सचिवालय पर चोर व अराजक तत्वों की नजर है। ट्यूबलाइट, विद्युत पंखा, बल्ब, वायरिग, दरवाजा, खिड़की गायब हो चुके हैं। आरोप कि पंचायत भवन अथवा मिनी सचिवालय की दुर्दशा के प्रति सीधे तौर पर गांव के जनप्रतिनिधि जिम्मेदार हैं।
वहीं जागरूक जनप्रतिनिधियों के सहयोग से चितौडी, करेमुआ समेत आधा दर्जन पंचायतों के भवन का मरम्मत रंग रोगन कराया गया है। जो अन्य के लिए आईना बने हुए हैं।
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वर्जन-
पंचायत भवनों के प्रति पंचायत प्रतिनिधियों की जवाबदेही बनती हैं। ग्राम पंचायतों में धन की कमी नहीं है। मरम्मत व रंग रोगन के लिए निर्देश दिए गए हैं।
सरिता सिंह, खंड विकास अधिकारी