मनरेगा के मजदूरों को नहीं मिली मजदूरी, मुश्किल
गांव में ही श्रमिकों को काम मिले और उन्हें दर-दर भटकना न पड़े इस उद्देश्य से मनरेगा का संचालन किया गया लेकिन फावड़े से मेहनत कर पसीना-पसीना होने वाला मजदूर आज काम करने के बाद भी भूखे पेट सोने के मजबूर है। कारण मई-जून माह में तालाबों की खोदाई का काम करने के बाद भी मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ।
जासं, चकिया (चंदौली) : गांव में ही श्रमिकों को काम मिले और उन्हें दर-दर भटकना न पड़े, इस उद्देश्य से मनरेगा का संचालन किया गया लेकिन, फावड़े से मेहनत कर पसीना-पसीना होने वाला मजदूर आज काम करने के बाद भी भूखे पेट सोने को मजबूर है। कारण, मई-जून माह में तालाबों की खोदाई का काम करने के बाद भी मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ। मजदूर बैंक व विकास खंड कार्यालय का चक्कर काट रहे हैं। आरोप कि मनरेगा के अधिकारी भुगतान कराने को गंभीर नहीं हैं।
गांव में होने वाले विकास कार्यों में वह मेहनत तो करता है लेकिन, काम का प्रतिफल कब मिलेगा इसका कोई भरोसा नहीं। केंद्र सरकार की सबसे बड़ी योजना मनरेगा मजदूरों का पेट नहीं भर पा रही है। शासन से स्पष्ट निर्देश हैं कि मनरेगा में काम करने वाले जाबकार्ड धारकों को कार्य लेने के बाद 15 दिन के अंदर भुगतान उनके खातों में भेज दिया जाए लेकिन, अधिकारी इसका अनुपालन करने में नाकाम साबित हो रहे हैं। ब्लाक स्तर पर तकनीकी सहायक व सचिव फीडिग करने में लापरवाही कर रहे हैं। मनरेगा की ऑनलाइन रिपोर्ट की समीक्षा में यह खुलासा हुआ। गांव के अधिकांश श्रमिकों की रोजी- रोटी मनरेगा पर निर्भर करती है। परिवार का पेट भरने के लिए इस वर्ष भी मजदूरों ने भीषण उमस व गर्मी में कुएं की सफाई व तालाब खोदने के लिए पसीना बहाया। मगर इतनी मेहनत के बाद भी उन्हें भूखे पेट सोना पड़ रहा है। रक्षाबंधन त्योहार नजदीक होने के चलते सप्ताह भर से मजदूरों में मेहनताना पाने के लिए दौड़ लगानी पड़ रही है।
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