गांव के वोटर कर रहे नेताजी का इंतजार..
लोकतंत्र के महापर्व में सातवें व अंतिम चरण के मतदान को लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। आए दिन बड़े नेताओं की हो रही सभाओं से हलचल पैदा हो गई है लेकिन गांव के वोटरों को अभी भी नेताजी का इंतजार है। तपती गर्मी ने राजतनीतिक दलों के सुरमाओं के कदम को रोक दिया है। अपना दुखड़ा सुनाने को ग्रामीणों में बेचैनी देखी जा रही वहीं युवा भी उत्साहित हैं। लेकिन गांव की पगडंडियां नेताओं की पदचाप से सुनी ही नजर आ रही हैं। गांवों में ना सिर्फ
जासं, चंदौली : लोकतंत्र के महापर्व में सातवें व अंतिम चरण के मतदान को लेकर सियासी सरगर्मी जहां तेज हो गई है, वहीं आए दिन बड़े नेताओं की सभाओं ने भी जोर पकड़ लिया है। लेकिन गांव के वोटरों को अभी भी नेताजी का इंतजार है। तपती गर्मी ने राजतनीतिक दलों के सुरमाओं के कदम को रोक दिया है। अपना दुखड़ा सुनाने को ग्रामीणों में बेचैनी देखी जा रही वहीं युवा भी उत्साहित हैं। लेकिन गांव की पगडंडियां नेताओं की पदचाप से सुनी ही नजर आ रही हैं।
गांवों में ना सिर्फ वोटरों की तादाद ज्यादा है, बल्कि शहरी इलाकों के मुकाबले वोटिग भी ज्यादा होती है। इसके बावजूद पार्टियों का ग्रामीण इलाकों में सीधे जनसम्पर्क पर उतना ध्यान नहीं गया है जितना कि नगरों व कस्बों पर। कस्बा, बाजारों में सुबह की चाय के साथ ही राजनीति गरमा जा रही। लेकिन ग्रामीण इलाकों में अभी भी मतदान को लेकर सन्नाटा पसरा हुआ है। हालांकि ग्रामीण युवाओं में मतदान को लेकर कुछ ज्यादा ही उत्साह देखने को मिल रहा है। मोबाइल व वाट्सएप के जरिए युवाओं में अपना नेता बनाने की होड़ लगी है। खेती किसानी से खाली हो चुके ग्रामीण चट्टी, चौपालों पर नेताजी का इंतजार कर रहे हैं कि आएं तो उनसे दो बात हो जाए। मसलन पांच वर्ष में जो नहीं हुआ तो क्यों नहीं और आगे उनसे क्या उम्मीद रखी जाए। लेकिन नेताजी के दर्शन ही नहीं हो पा रहे हैं। राव्टसगंज सुरक्षित सीट के हिस्सा बने चकिया विधानसभा के मुबारकपुर, मूसाखांड़, छित्तमपुर आदि गांवों के ग्रामीण कहते हैं कि उनकी तो कोई सुनने वाला ही नहीं। चंदौली संसदीय सीट से जुड़े होने पर नेताजी से भेंट भी हो जाती थी। अब तो पांच वर्ष में एक बार भी मिलना मुश्किल हो गया है।
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