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साहब की गैरहाजिरी में मातहतों की चांदी, मोबाइल पर खेलते मिले गेम

साहब की गैरहाजिरी में मातहतों की चांदी कट रही। कामकाज छोड़कर मनोरंजन के मूड में आ जा रहे। कुछ ऐसी ही स्थिति मंगलवार को सीएमओ दफ्तर में दिखी। दैनिक जागरण की टीम ने सुबह 1047 बजे दफ्तर का जायजा लिया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 07 Jan 2020 05:52 PM (IST)Updated: Tue, 07 Jan 2020 11:55 PM (IST)
साहब की गैरहाजिरी में मातहतों की चांदी, मोबाइल पर खेलते मिले गेम
साहब की गैरहाजिरी में मातहतों की चांदी, मोबाइल पर खेलते मिले गेम

जागरण संवाददाता, चंदौली : साहब की गैरहाजिरी में मातहतों की चांदी कट रही है। कामकाज छोड़कर मनोरंजन के मूड में आ जा रहे है। कुछ ऐसी ही स्थिति मंगलवार को सीएमओ दफ्तर में देखने को मिली। दैनिक जागरण की टीम ने सुबह 10:47 बजे दफ्तर का जायजा लिया। सीएमओ की कुर्सी खाली थी, जबकि परिचारक मोबाइल पर लूडो खेलते मिले। बताया कि साहब, संपूर्ण समाधान दिवस में भाग लेने गए हैं। दोपहर दो बजे के बाद लौटेंगे। इसके अलावा कई एसीएमओ अनुपस्थित थे, जबकि कर्मचारी विभागीय कार्य निबटाते मिले।

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जिला अस्पताल परिसर में स्थित सीएमओ कार्यालय में नौ एसीएमओ व 50 कर्मी नियुक्त हैं। मंगलवार की सुबह दफ्तर में सीएमओ डा. आरके मिश्रा की कुर्सी खाली थी। बाहर छत पर धूप में बैठे परिचारक मोबाइल पर लूडो खेलते मिले। पूछने पर बताया कि साहब सुबह दफ्तर आए थे। इसके बाद संपूर्ण समाधान दिवस में शामिल होने के लिए सकलडीहा चले गए। दोपहर दो बजे के बाद वापस आएंगे। एसीएमओ डा. डीके सिंह दफ्तर में विभागीय योजनाओं की फाइलें पलटते नजर आए। वहीं एसीएमओ डा. नीलम ओझा और डा. डीएन मिश्रा भी दफ्तर में मौजूद मिले। बाबुओं को लगाकर टीकाकरण समेत अन्य योजनाओं का डाटा अपडेट कराते रहे, जबकि एसीएमओ डा. पीके चतुर्वेदी, डा. एनके प्रसाद, डा. एनपी चौधरी, डा. एसके विश्वास, डा. संजय सिंह, डा. एसके मिश्रा अनुपस्थित थे। 50 कर्मचारियों में कमोवेश सभी उपस्थित थे। दो कर्मी सीएमओ के साथ संपूर्ण समाधान दिवस में गए थे। शेष अपने पटल का कामकाज निबटाते मिले। जिले में स्वास्थ्य सुविधाएं खस्ताहाल हाल हैं। शासन की लाख सख्ती के बावजूद अस्पतालों से चिकित्सक गायब रहते हैं। इसके चलते मरीजों को बेहतर इलाज नहीं मिल पा रहा है। मजबूरन उन्हें निजी अस्पतालों की शरण लेनी पड़ती है। जननी सुरक्षा योजना और टीकाकरण की भी स्थिति संतोषजनक नहीं है। संस्थागत प्रसव के मामले में गैर प्राधिकृत अस्पतालों से प्राधिकृत अस्पताल काफी पीछे हैं। प्राधिकृत अस्पतालों में महज 131 प्रसव हुए, जबकि गैर प्राधिकृत अस्पतालों में नौ हजार से अधिक प्रसव हुए। लाभार्थियों के भुगतान के प्रतिशत में भी गिरावट आई है। जिले में लाल व पीला श्रेणी के तकरीबन तीन हजार बच्चे होने के बावजूद एनआरसी (पोषण पुनर्वास केंद्र) के बेड खाली हैं। दु‌र्व्यवस्थाओं के चलते सरकारी अस्पतालों से लोगों का भरोसा उठता जा रहा है। दवाइयों की उपलब्धता 77 फीसद

सरकारी अस्पतालों में जीवनरक्षक दवाइयों का भी टोटा है। अस्पतालों में मांग के अनुरूप 77 फीसद ही आपूर्ति हो पा रही। आपरेशन समेत एंटीबायोटिक दवाइयां न रहने की वजह से मरीजों के इलाज में बाधा आ रही है। मजबूरन चिकित्सक मरीजों को रेफर कर देते हैं। आयुष्मान योजना खस्ताहाल

आकांक्षात्मक जिले में आयुष्मान योजना का खस्ताहाल है। निजी अस्पताल पात्रों के इलाज में आनाकानी कर रहे। वहीं सरकारी अस्पतालों में भी योजना की प्रगति संतोषजनक नहीं है। अस्पतालों का भुगतान काफी दिन से लटका हुआ है। इसके चलते योजना परवान नहीं चढ़ पा रही है।


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