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रसोईघर में मां का हाथ बंटा रहीं इंजीनियर बेटी प्रियंका

कोरोना त्रासदी के दौर में मां की ममता व पिता के दुलार ने इंजीनियर बिटिया प्रियंका को दिल्ली स्थित ससुराल से मायका खींच लाई। ऐसा नहीं कि ससुराल में उन्हें रुकने को किसी ने न कहा हो

By JagranEdited By: Published: Sat, 09 May 2020 06:08 PM (IST)Updated: Sat, 09 May 2020 06:08 PM (IST)
रसोईघर में मां का हाथ बंटा रहीं इंजीनियर बेटी प्रियंका

जासं, चंदौली : कोरोना त्रासदी के दौर में मां की ममता व पिता के दुलार ने इंजीनियर बिटिया प्रियंका को दिल्ली स्थित ससुराल से मायका खींच लाई। ऐसा नहीं कि ससुराल में उन्हें रुकने को किसी ने न कहा हो, सभी ने उन्हें रोका लेकिन, वैश्विक महामारी ही ऐसी कि उन्हें अपनों के बीच रखने पर विवश कर दिया। जिन गलियों में खेला-कूदा, पली-बढ़ी और प्रारंभिक शिक्षा पाई..। लॉकडाउन ने इंजीनियर बिटिया को वहीं रख दिया है। वह अपनी मां संग किचन (रसोईघर) में जहां हाथ बंटाती हैं, वहीं पिता व भाई को भोजन भी परोसती हैं।

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शहाबगंज ब्लाक मुख्यालय से सटे अतायस्तगंज गांव निवासी पेशे से किसान संतोष मिश्र व सरोज पांडेय की बिटिया प्रियंका दिल्ली में इंजीनियर हैं। इनके पति भी यहां इंजीनियर हैं। दोनों साथ-साथ कार्य करते हैं। मौजूदा समय में घर की चहारदीवारी में प्रियंका कार्य कर रही हैं। बतातीं हैं कि उनके अब तक के जीवन में बीते 12 वर्षों बाद एक ऐसा मौका आया, जब वे अपनी मां के साथ खास क्षणों को गुजार रहीं हैं। रसोईघर में छोटे-छोटे प्रयोजनों जैसे पानी पूड़ी के लिए गोलगप्पे, रसगुल्ले, पनीर, पनीर की सब्जी, पनीर पकौड़ा, स्वादिष्ट भोजन, पिता जी के लिए ग्रीन टी आदि बनाने का सफल और असफल प्रयास से मां को अति आह्लादित किया। सोशल मीडिया, यू ट्यूब के साथ ही मनरंजन के संसाधनों का प्रयोग भी सिखाया। इनके अलावा बाबा रामदेव के घरेलू नुस्खे तो कभी रामायण, श्रीकृष्णा और महाभारत के एपिसोड देखे जाने को दिनचर्या में ढाल लिया है। बात कुछ दिनों पूर्व की है, अचानक मां अस्वस्थ हुईं तो घर में सन्नाटा-सा पसर गया। पूरे घर को समझ में आया कि असल में घर की रौनक मां से ही है। वजह थी घर में मां भवानी, भोलेनाथ की पूजा-अर्चना के लिए फूलों को लाने में विलंब की। हालांकि इस हालात में भी मां बहुत जल्द संभल गई। इसके बाद तो मैंने घर की छत पर फूलवारी व बागवानी लगाने को ठान ली। पिताजी और भाई की मदद से पुराने डिब्बे, फूटे कनस्तरों, मटकों सबमें में उनकी पूजा के लिए आवश्यक चीजें दुर्बा, फूल  इत्यादि लगाया। सो यह समस्या अब खत्म हो गई। मां का स्वास्थ्य मेरे ससुराल जाने के बाद भी बेहतर रहे, इसके लिए मैं गेहूं के बीज की बोआई की ताकि वो प्रत्येक दिन गेहूं के घास का जूस पी सकें। क्योंकि इसे हरा रक्त कहते हैं। हालांकि मां के प्यार और त्याग के सम्मुख मेरे ये प्रयास गिनती में कहीं भी नहीं थे लेकिन मां के लिए मायने रखते हैं।

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मां को अर्पित प्यारा-सा गीत हंसता रहे हमारा कल,

इसलिए अपने आज को खो देती है

वो मेरी मां है , 

जो मेरी हर सिसकी से पहले रो देती है।।

बोलूं मैं अपनी जरूरत पे कुछ, 

की इससे पहले ही समझ जाती है,

जानना चाहती हूं मैं भी मां,

तू ऐसी कौन-सी युक्ति अपनाती है ।।

मेरी पथराई आंखों में ठहरे,

सारे मंजर वो देख लेती है।।


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