न्याय न मिलने पर आयोग से गुहार, सालाना हजार मामले
मानवता के खिलाफ हो रहे जुल्म-ए-सितम के पीड़ित न्याय के लिए मानवाधिकार आयोग का दरवाजा खटकटा रहे। जिले में सालाना इस तरह के करीब एक हजार मामले सामने आ रहे हैं। कई मामलों को तो आयोग ने स्वत संज्ञान लिया और प्रशासनिक अधिकारियों से रिपोर्ट तलब की। आयोग के हस्तक्षेप के बाद पीड़ितों को राहत मिली और पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर मामलों की तफ्तीश शुरू कर दी। इससे पीड़ितों को न्याय मिलने की उम्मीद जग गई है
जागरण संवाददाता, चंदौली : मानवता के खिलाफ हो रहे जुल्म के पीड़ित न्याय के लिए मानवाधिकार आयोग का दरवाजा खटखटा रहे। जिले में सालाना इस तरह के करीब एक हजार मामले सामने आ रहे हैं। कई मामलों को तो आयोग ने स्वत: संज्ञान लिया और प्रशासनिक अधिकारियों से रिपोर्ट तलब की। आयोग के हस्तक्षेप के बाद पीड़ितों को राहत मिली और पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर मामलों की तफ्तीश शुरू कर दी। इससे पीड़ितों को न्याय मिलने की उम्मीद जग गई है।
पुलिस की ओर से मानव अधिकारों के हनन के मामले अक्सर प्रकाश में आते हैं। आयोग के फरमान पर थानों में मानवाधिकार बोर्ड लगाए गए हैं। इसमें मानव अधिकार के सभी बिदुओं का उल्लेख किया गया है ताकि थानों पर पहुंचने वाले फरियादी और पीड़ित संविधान की ओर से प्रदत्त अपने अधिकारों के बारे में जान जाएं और पुलिस उनका उत्पीड़न कदापि न कर सके। लेकिन आकांक्षात्मक जनपद में अपने अधिकारों को लेकर लोग सतर्क नहीं हैं। पुलिस व प्रशासन की लचर कार्यप्रणाली की भी कम भूमिका नहीं है। थानों पर तहरीर देने के बावजूद जांच के नाम पर पुलिस टरका रही है और मुकदमे नहीं दर्ज किए जा रहे। शासन से प्रदत्त सुविधाओं और योजनाओं का भी लाभ नहीं मिल रहा। विभागीय लापरवाही के चलते जान पर खतरा होने के बाबत गुहार लगाने पर भी अधिकारियों पर कोई असर नहीं पड़ता। ऐसे में पीड़ितों को मानवाधिकार आयोग की शरण लेनी पड़ रही। आयोग के पदाधिकारियों की मानें तो सालाना करीब एक हजार मामले आते हैं। इसमें पुलिस प्रताड़ना ही नहीं बल्कि कोटेदार की ओर से खाद्यान्न न देने, सरकारी स्कूलों में गरीब बच्चों की शिक्षा और सरकारी दुर्व्यवस्था के मामले शामिल हैं। जिले में सक्रिय संस्था ह्यूमन राइट्स सीडब्ल्यूए के सदस्यों और पदाधिकारियों की ओर से मामले मानवाधिकार आयोग तक पहुंचाए जा रहे। आयोग के संज्ञान लेने पर प्रशासनिक महकमे ने कार्रवाई शुरू की। थानों में मुकदमे दर्ज हुए, विद्युत करेंट से मौत के बाद परिजनों को मुआवजा मिला और दुर्व्यवस्था दूर हुईं। आयोग के हस्तक्षेप पर बना लोहिया आवास
शहाबगंज ब्लाक के राममाड़ो गांव में तालाब की भूमि के विवाद के चलते लोहिया आवास के निर्माण की प्रक्रिया अधर में लटक गई थी। ग्राम प्रधान और लाभार्थियों ने जिलाधिकारी समेत उच्चाधिकारियों के यहां गुहार लगाई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। मानवाधिकार आयोग को पत्र भेजकर समस्या से अवगत कराया गया। आयोग के हस्तक्षेप के बाद तालाब के किनारे एक दर्जन से अधिक लोहिया आवासों का निर्माण कराया गया और गरीबों को छत नसीब हुई।