नामांकन के बाद 40 फीसद बच्चे नहीं लांघते स्कूलों की दहलीज
???????????? ???? ??? ??????? ?? ?????? ?? ????? ??? ??????? ????? ??? ????? ??????? ????? ?? ??? 40 ????? ????? ??????? ?? ????? ???? ??????? ?????? ??????? ??????? ?? ???? ?????? ???? ??? ??????? ??????? ??? ????? 60 ????? ?????-???????? ??? ?? ???-??-??? ?? ????? ???? ???? ???
जागरण संवाददाता, चंदौली : आकांक्षात्मक जिले में स्कूलों से बच्चों की ड्रापआउट रिपोर्ट (नामांकन बाद स्कूल छोड़ देना) शून्य है, लेकिन नामांकन कराने के बाद 40 फीसदी बच्चे स्कूलों की दहलीज नहीं लांघते। एमडीएम कनवर्जन (मध्याह्न भोजन खर्च) रिपोर्ट से इसकी पुष्टि होती है। परिषदीय विद्यालयों में मात्र 60 फीसदी छात्र-छात्राओं में ही मिड-डे मील का वितरण किया जाता है। विभागीय अधिकारियों की ओर से स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने के निर्देश दिए जाते हैं, लेकिन इस पर अमल नहीं हो रहा। इसके चलते ऐसी स्थिति बनी हुई है।
जिले के 1463 प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में 2.14 लाख बच्चों का नामांकन हुआ है। इसमें बमुश्किल 1.25 लाख बच्चे ही नियमित विद्यालय पहुंचते हैं। शेष बच्चे स्कूलों में नाम लिखाने के बाद मेहनत-मजदूरी करने लगते हैं, अथवा बंधुआ मजदूरी में फंस जाते हैं। परिषदीय स्कूलों की बेपटरी शिक्षा व्यवस्था इसका सबसे बड़ा कारण है। अभिभावकों का मानना है कि स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती। ऐसे में रोज स्कूल जाने का कोई औचित्य नहीं है। सरकार की ओर से मिलने वाली छात्रवृत्ति व अन्य सुविधाओं की लालच में सरकारी स्कूलों में नामांकन करा दिया जाता है। दो स्कूलों में होता है नामांकन
जनपद में काफी संख्या में बच्चों का दो-दो स्कूलों में नामांकन होने की चर्चाएं जोर पकड़ती है, लेकिन सरकारी मिशनरी की चुप्पी से चर्चाएं हवाहवाई हो जाती हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए अभिभावक बच्चों का परिषदीय स्कूलों में नाम लिखाते हैं, लेकिन कभी इन स्कूलों में नहीं भेजते। सीबीएसई बोर्ड से संचालित किसी कान्वेंट स्कूल में नाम लिखाकर पढ़ते हैं। इसके चलते परिषदीय स्कूलों में बच्चों की शत-प्रतिशत उपस्थिति नहीं हो पाती है।
नौगढ़ मानव तस्करी का गढ़
कृषि प्रधान जिले के नक्सल प्रभावित चकिया, शहाबगंज और नौगढ़ ब्लाक से सबसे अधिक बच्चे बंधुआ मजदूरी के लिए अन्य प्रांतों में भेजे जाते हैं। इन ब्लाकों में मानव तस्करों का रैकेट काम करता है। गरीब परिवार के माता-पिता को बच्चों की सुविधा-सहूलियत और अच्छी कमाई का झांसा देकर बच्चों को गुजरात, महाराष्ट्र समेत अन्य प्रदेशों में ले जाते हैं। वहां बच्चों का शोषण किया जाता है। शारदा अप्लिकेशन बना मददगार
विभाग जागरूकता के अभाव में शिक्षा से वंचित बच्चों का स्कूलों में नामांकन कराता है। शारदा एप के जरिये इसकी रिपोर्ट शासन को भेजी जाती है। चालू शैक्षणिक सत्र में जिले में 1423 बच्चों को चिह्नित किया गया। सदर ब्लाक में 554, नियामताबाद 160, शहाबगंज 149, नौगढ़ 124, बरहनी 106, चहनियां 104, सकलडीहा 103, धानापुर 82, चकिया 20 और पीडीडीयू नगर में 21 बच्चे मिले थे। सभी बच्चों का स्कूलों में दाखिला कराया गया। ''जिले में स्कूलों से बच्चों की ड्रापआउट रिपोर्ट शून्य है। इसके बाबत नीति आयोग और शासन को समय-समय पर रिपोर्ट भेजी जाती है। जानकारी के अभाव में शिक्षा से वंचित बच्चों का स्कूलों में दाखिला कराया जाता है।''
-भोलेंद्र प्रताप सिंह, बीएसए।