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वाद्य यंत्र बजाने की तकनीक संक्रमण पर पड़ी भारी

कोरोना संक्रमण का असर हर व्यवसाय पर पड़ा। इससे बैंड-बाजा कारोबार भी अछूता नहीं रहा। इस व्यवसाय से जुडे प्रति व्यक्ति को सालाना लाखों का नुकसान तो झेलना पड़ा लेकिन वह संक्रमण की चपेट से बचे रहे। क्योंकि उनकी वाद्य यंत्र बजाने की तकनीक संक्रमण पर भारी पड़ गई।

By JagranEdited By: Published: Fri, 18 Jun 2021 09:29 PM (IST)Updated: Fri, 18 Jun 2021 09:29 PM (IST)
वाद्य यंत्र बजाने की तकनीक संक्रमण पर पड़ी भारी

जेएनएन, बुलंदशहर। कोरोना संक्रमण का असर हर व्यवसाय पर पड़ा। इससे बैंड-बाजा कारोबार भी अछूता नहीं रहा। इस व्यवसाय से जुडे प्रति व्यक्ति को सालाना लाखों का नुकसान तो झेलना पड़ा, लेकिन वह संक्रमण की चपेट से बचे रहे। क्योंकि उनकी वाद्य यंत्र बजाने की तकनीक संक्रमण पर भारी पड़ गई।

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कोरोना काल में शादी ब्याह एवं अन्य समारोह न होने के कारण बैंड बजाने वालों को मायूस होना पड़ा है। इस दौरान जो शादियां हुईं या अब हो रही हैं उसमें चढ़त आदि न होने से बैंड बाजा की धुन बहुत कम ही सुनाई दे रही है। बैंड की टोली में ब्रास पाइपर बजाने वालों की अपनी अलग ही कतार होती है। जब यह ब्रास पाइपर बजाते हैं तो इनके गाल फूलने लगते हैं। उस वक्त तो इन्हें काफी मेहनत करनी पड़ती है लेकिन इसके फायदे भी हैं। वैज्ञानिक रूप से सह बात साबित हो चुकी है कि जो लोग नियमित रूप से पाइपर बजाते हैं उनमें फेफड़ों से संबंधित बीमारी की आशंका कम हो जाती है क्योंकि यह वाद्य यंत्र श्वास प्रणाली के आधार पर ही बजाया जाता है।

जिले में करीब 350 बैंड-बाजा व्यवसाई

बैंड बाजा व्यवसाय से जुडे़ लोग बताते हैं कि जिले में ब्रास पाइपर बजाने का व्यवसाय नहीं होता। डिमांड पर यह पार्टी गैर प्रदेश से बुलाई जाती है। जिले में करीब 350 लोग बैंड-बाजा का कारोबार करते हैं। प्रत्येक के पास औसतन करीब 50 लोग बैंड-बाजा एवं अन्य वाद्य यंत्र बजाने का काम करते हैं। उनकी बैंड-बाजा बजाने की तकनीक सांस संबंधी तकलीफों को दूर रखती है।

इन्होंने कहा.....

वाद्य यंत्र बजाने में नहीं होती परेशानी

जब बैंड-बाजा पार्टी में शामिल लोग अपना वाद्य यंत्र बजाते हैं तो इन्हें काफी जोर लगाना पड़ता है। रोजमर्रा की आदत में यह शुमार होने के कारण उन्हें परेशानी नहीं उठानी पड़ती है। अपने रोजगार को बनाए रखने के लिए सुपाच्य संतुलित आहार का सेवन करते हैं। इसलिए बीमारी से बचे रहते हैं।

मास्टर रियाजुद्दीन उर्फ राजू, संचालक राजू बैंड

नहीं मिली किसी के मरने की सूचना

शहर में करीब 20 बैंड-बाजा की दुकानें हैं। जिले भर में करीब 350 व्यवसाई इस कारोबार से जुडे़ है। कोरोना काल में यह कारोबार ठप रहा। इससे प्रति व्यवसाई करीब पांच लाख का नुकसान उठाना पड़ा है। हालांकि कोरोना संक्रमण की चपेट में आने से किसी के मरने को अभी तक कोई सूचना नहीं मिली है।

मास्टर नानक चंद, प्रबंधक, प्रकाश बैंड

वाद्य यंत्र बजाने तकनीक डालती है असर

बैंड बाजा पार्टी में शामिल लोगों की वाद्य यंत्र बजाने तकनीक शरीर के अंदरूनी अंगों पर प्रभाव डालती है। हवा अंदर खींचकर बाहर झोड़नी पड़ती है। इससे फेफड़े खुल जाते हैं। यहीं वजह रही कि कोरोना काल में अन्य लोगों की अपेक्षा इन लोगों का आक्सीजन स्तर कम नहीं हुआ और यह संक्रमण से बचे रहे।

मास्टर डाल चंद, संचालक, विशाल बैंड

सरकार ने इस ओर नहीं दिया ध्यान

वाद्य यंत्र बजाने की तकनीक की वजह से बैंड-बाजा बजाने वालों में संक्रमण फैलने का कम खतरा रहा। फिर भी सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और कोरोना काल में कारोबार ठप रहा। ऐसे में दैनिक जरूरतें पूरी करने के लाले पड़ गए हैं। आज जो लोग बैंड बाजा बजाते थे वह मजदूरी करने को मजबूर हो गए हैं।

मास्टर हरेंद्र सिंह, संचालक, चंद्रा बैंड


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