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आस्था और श्रद्धा का अटूट संगम है सर्वमंगला शक्तिपीठ

नरौरा क्षेत्र के बेलौन गांव में स्थित सर्वमंगला मां बेला भवानी का शक्तिपीठ इन दिनों प्रदेश में काफी चर्चा में है। मंदिर का अधिकार पाने के लिए दावेदारों का अपना-अपना तर्क है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 18 Oct 2019 11:34 PM (IST)Updated: Sat, 19 Oct 2019 06:09 AM (IST)
आस्था और श्रद्धा का अटूट संगम है सर्वमंगला शक्तिपीठ

बुलंदशहर, जेएनएन। नरौरा क्षेत्र के बेलौन गांव में स्थित सर्वमंगला मां बेला भवानी शक्तिपीठ इन दिनों चर्चा में है। श्रद्धा-आस्था के प्रतीक शक्तिपीठ पर पूर्ण अधिकार पाने के लिए जूझ रहे दावेदारों के बेशक अपने तर्क हैं, लेकिन आस्था पर इसका कोई प्रभाव नहीं है। वर्तमान में मंदिर परिसर में चल रहे 15 दिवसीय मेले के दौरान आए चढ़ावे के हिसाब-किताब का जिम्मा समिति के पास है।

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बेलौन गांव में सर्वमंगला मां बेला भवानी शक्तिपीठ करीब तीन सदी से आस्था का केंद्र है। यहां पूरे साल देशभर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। वर्ष 2006 में प्रदेश सरकार के धर्मार्थ कार्य विभाग द्वारा गठित कमेटी ने मंदिर को अपने अधिकार में ले लिया था। कमेटी में जिलाधिकारी को अध्यक्ष जबकि मंदिर के पंडा हरिओम उपाध्याय और विकास भारद्वाज समेत 6-7 अन्य अधिकारियों को बतौर सदस्य रखा गया। कमेटी गठन के विरोध में 2006 में पंडा हाईकोर्ट चले गए, जहां वर्षों तक मामला चलता रहा। पूर्व प्रधान ने जताया हक

मंदिर पर अधिकार के मामले में नया मोड़ तब आया जब 2006 में ही बेलौन के पूर्व प्रधान विजय प्रताप ने मंदिर का निर्माण अपने पूर्वजों द्वारा कराये जाने का दावा करते हुए हाईकोर्ट में अपील कर दी। 2009 में फैसला पंडाओं के पक्ष में आया। इसके बाद विजय प्रताप सुप्रीम कोर्ट से यथास्थिति का स्टे ले आए। तब से कमेटी की देखरेख में ही यहां व्यवस्थाओं का संचालन हो रहा है। किंवदंती और कथाओं में मंदिर

प्राचीन गर्ग संहिता में भी इस शक्तिपीठ का उल्लेख है। कथाओं के मुताबिक, एक बार पार्वती ने भगवान शिव से समस्त धर्मग्रंथों का महत्व जानने की इच्छा जताई। शिव ने पार्वती से कहा-हे देवी गंगा किनारे स्थित वृद्धकेशी सिद्धपीठ (वर्तमान में नरवर) से चार मील दूर विल्वकेश वन (वर्तमान में बेलौन) है, वहां जाओ। वहां कलियुग में तुम्हें इन समस्त ग्रंथों के महत्व का पूर्ण ज्ञान होगा। पार्वती बेलौन में पत्थर की मूर्ति के रूप में प्रतिष्ठित हो गई। किंवदंती है कि सदियों पहले ग्वालियर नरेश को पार्वती ने स्वप्न में दर्शन देकर अपने पत्थर रूप में प्रतिष्ठित होने की जानकारी दी थी। नरेश ने करीब 300 साल पहले यहां आकर मंदिर का निर्माण कराया।

--------- मंदिर पर अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। आगामी मंगलवार को फिर सुनवाई होगी। धर्म और श्रद्धा के आधार पर मंदिर की देखरेख और संचालन का अधिकार पंडाओं को मिलना चाहिए।

-हरिओम उपाध्याय,

मंदिर के मुख्य पंडा।


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