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महमूद के हाथों 'जन्म' लेता है रावण का कुनबा

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने धर्म की स्थापना व आदर्शो का विरल और अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया था। रामलीला का मंचन उन्हीं आदर्शो की झांकी है। इस आयोजन का एक खास किरदार है महमूद। पहले उनके पुरखे रावण कुंभकरण के पुतले बनाते रहे। अब यह जिम्मा खुद उनके पास है। धार्मिक सद्भाव और भाईचारा बनाने के मकसद से दशकों पहले शुरू हुई यह परंपरा आज तक कायम है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 05 Oct 2019 08:09 PM (IST)Updated: Sat, 05 Oct 2019 08:56 PM (IST)
महमूद के हाथों 'जन्म' लेता है रावण का कुनबा

बुलंदशहर, जेएनएन। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने धर्म की स्थापना व आदर्शो का विरल और अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया था। रामलीला का मंचन उन्हीं आदर्शो की झांकी है। इस आयोजन का एक खास किरदार है महमूद। पहले उनके पुरखे रावण, कुंभकरण के पुतले बनाते रहे। अब यह जिम्मा खुद उनके पास है। धार्मिक सद्भाव और भाईचारा बनाने के मकसद से दशकों पहले शुरू हुई यह परंपरा आज तक कायम है।

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पुरानी है परंपरा

खुर्जा में दशहरा महोत्सव में दहन होने वाले कुभंकरण, रावण, मेघनाथ आदि के पुतलों का निर्माण श्रीरामलीला कमेटी दशकों से मुस्लिम कारीगरों से ही कराती रही है। कमेटी पदाधिकारी बताते हैं-परंपरा के मुताबिक पुतलों का निर्माण मुस्लिम कारीगरों से इसलिए कराया जाता है, ताकि धार्मिक सद्भाव और भाईचारा कायम रहे। खुर्जा के मोहल्ला तरीनान निवासी महमूद के पिता अली हसन कई दशक से दशहरा आयोजन के लिए पुतले बनाते रहे थे। 12 वर्ष की उम्र से ही महमूद इस काम में पिता का हाथ बंटाने लगे। इसके चलते वह भी इस कला में पूर्ण पारंगत हो गए। 2006 में महमूद ने खुद पुतले बनाने शुरू कर दिए। हालांकि, यह काम सीजनल है, लिहाजा बाकी समय में कोई दूसरा काम करते हैं। गत वर्ष 14 अप्रैल को अली हसन दुनिया को अलविदा कह गए थे। इसके बाद महमूद ने श्रीरामलीला कमेटी से जुड़कर पुतले बनाने का जिम्मा अपने कंधों पर ले लिया। घूमती दिखेंगी पुतलों की आंखें

रामलीला में हर साल पुतलों में नए तकनीकी प्रयोग हो रहे हैं। रावण, कुंभकरण, मेघनाथ, ताड़का, सुबाहु समेत दर्जनभर पुतलों का दहन किया जाता है। इस बार खास यह है कि सभी पुतले रोशनी से जगमग होंगे। बल्ब आदि लगाकर इनकी आंखें घूमती हुई दिखाई देंगी। यह नजारा श्रद्धालुओं के लिए खास होगा। खुर्जा की रामलीला के लिए पुतला निर्माण का जिम्मा कई दशक से मुस्लिम परिवार के हाथों में है। इससे धार्मिक सदभाव का संदेश जाता है। साथ ही मुस्लिम समाज के लोग भी आयोजन से जुड़ जाते हैं।

-चंद्रपाल साहनी, महाप्रबंधक रामलीला कमेटी


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