'रामराज्य' के घाट पर 'कोहिनूर' का नूर
साधारण रूप में रामराज्य को मात्र सुख-सुविधाओं का पर्याय मान लिया जाता है लेकिन असल में यह उसमें रहने वाले लोगों के पवित्र आचरण व्यवहार विचार मर्यादा पालन और श्रेष्ठ शासन व्यवस्था का प्रतीक है। इसी अवधारणा की बुनियाद पर खड़ा हुआ शाह फैसल का रामराज्य स्कूल।
बुलंदशहर, जेएनएन। साधारण रूप में 'रामराज्य' को मात्र सुख-सुविधाओं का पर्याय मान लिया जाता है लेकिन असल में यह उसमें रहने वाले लोगों के पवित्र आचरण, व्यवहार, विचार, मर्यादा पालन और श्रेष्ठ शासन व्यवस्था का प्रतीक है। इसी अवधारणा की बुनियाद पर खड़ा हुआ शाह फैसल का रामराज्य स्कूल। हिदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबके लिए इसके कपाट खुले हैं। शर्त इतनी सी कि वह गरीब हो, जरूरतमंद हो। सात साल से कूड़े से कोहिनूर चुन रहे विद्यालय से निकले सैकड़ों बच्चे उच्च व्यवसायिक शिक्षा भी ले रहे हैं। फैसल की तरह अन्य लोग भी ऐसा दृढ़ फैसला ले लें तो कूड़े का बोरा टांगने वाले बच्चों के कंधे पर भी स्कूल बैग लटकता नजर आएगा।
चांदपुर रोड निवासी शाह फैसल कई स्कूलों के प्रबंधक हैं। वर्ष 2012 में उन्होंने रामराज्य स्कूल की शुरुआत की। आवास विकास-2 कालोनी में खुले इस स्कूल में खासतौर पर कूड़ा बीनने वाले, रिक्शा चालकों के बच्चे या फिर उन बच्चों को दाखिला मिलता है जिन्हें तंगहाली के चलते बीच में पढ़ाई छोड़नी पड़ी। सीबीएसई से संबद्ध विद्यालय में कक्षा एक से कक्षा 12 तक सभी धर्मों के 132 बच्चे पढ़ रहे हैं। इनमें शहरी और ग्रामीण दोनों बच्चे हैं। बच्चों और स्कूल के प्रबंधन का पूरा खर्च शाह फैसल स्वयं उठाते हैं।
दाखिला से यूनिफार्म सबकुछ निश्शुल्क
स्कूल में प्रवेश लेने वाले बच्चों को यूनिफार्म, किताब-कॉपी आदि की निश्शुल्क व्यवस्था है। बच्चों को पढ़ाने के लिए विषयवार शिक्षक-शिक्षिकाओं की व्यवस्था है।
सात सौ बच्चों ने बदली जीवन की दिशा
सात साल पहले शुरू हुए स्कूल में अब तक 700 बच्चों को शिक्षा दी जा चुकी है। अधिकांश बच्चों ने आगे भी पढ़ाई जारी रखी। यहां के बाद तमाम बच्चे बीए, बीकाम, बीटेक, बीसीए, एमटेक, एमसीए, एमए तक कर रहे हैं। कुछ ने इंटर के बाद स्वरोजगार शुरू कर जीवन को नई दिशा दी। बड़ी बात है कि इस स्कूल से निकलने के बाद भी शाह फैसल इन बच्चों की उच्च शिक्षा का खर्च उठा रहे हैं।
इन्होंने कहा..
जीवन में सभी को नेकी के काम करते रहना चाहिए। रामराज्य स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को देख असीम शांति प्राप्त होती है। दिन में एक बार जरूर स्कूल में जाता हूं। बच्चों को आगे बढ़ते देखना अच्छा लगता है।
-शाह फैसल, स्कूल प्रबंधक