ईमानदारी में हो सबकी भागीदारी
जेएनएन बुलंदशहर देश की स्वाधीनता के कई दशक बीत जाने के बाद आज यह विचार किया जाना चाहिए कि मनुष्य जिन जीवन मूल्यों के आधार पर अपना जीवन जी रहा हैं? वे कितने प्रासंगिक हैं?
जेएनएन, बुलंदशहर: देश की स्वाधीनता के कई दशक बीत जाने के बाद आज यह विचार किया जाना चाहिए कि मनुष्य जिन जीवन मूल्यों के आधार पर अपना जीवन जी रहा हैं? वे कितने प्रासंगिक हैं? क्या इन जीवन मूल्यों के आधार पर एक उन्नत समाज एवं प्राचीन आर्य संस्कृति के प्रतिस्थापन की कल्पना की जा सकती है? वर्तमान में अपनाए जा रहे जीवन मूल्य मानव को किस दिशा में ले जा रहे हैं? क्या ये जीवन मूल्य मनुष्य को राष्ट्रभक्ति एवं आदर्श चरित्र के रूप में प्रस्तुत करने में सक्षम हैं? आज आवश्यकता हैं? मनुष्यों में ईमानदारी, परोपकार, सेवा जैसे प्राचीन एवं यशस्वी जीवन मूल्य विकसित किए जाएं, तभी हमारा देश पूर्व की भांति विश्व का सिरमौर बन सकेगा। अच्छे जीवन मूल्यों को अपनाने से व्यक्ति का समग्र चरित्र निखरता है। क्योंकि चरित्रवान व्यक्तियों से ही एक चरित्रवान समाज का निर्माण हो सकता हैं? और इसी से सम्पूर्ण राष्ट्र विकसित होता है। सार्वजनिक सम्पत्ति न केवल देश की बल्कि सम्पूर्ण प्रकृति की धरोहर है। हमें प्रकृति से उतना ही स्वीकार करना चाहिए जितनी हमें आवश्यकता हो। अन्यथा प्रकृति का अनावश्यक एवं अंध दोहन कई प्राकृतिक आपदाओं का कारण बन सकता है। दैनिक जागरण की संस्कारशाला में प्रकाशित सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान विषय पर प्रकाशित कहानी यही संदेश दे रही है। वर्तमान पीढ़ी को दिखाएं सही राह
बेवक्त की बरसातें, भूकंप, बाढ़, तूफान आदि मानव और प्रकृति के असंतुलन का ही परिणाम है। तो आज आवश्यकता है प्राकृतिक संपदाओं के संरक्षण की, वस्तुओं के सदुपयोग एवं दुरुपयोग संबंधी विवेक की। जो प्रकृति का संरक्षण करता है, समय आने पर प्रकृति भी मार्गदर्शिका बनकर व्यक्ति की मुश्किल राहें आसान कर देती है। इसके लिए आवश्कता है विद्यालयों में ही छात्र-छात्राओं को मूल्यपरक शिक्षा दी जाए। उन्हें विविध पाठ्य सहगामी गतिविधियों के द्वारा जल-संरक्षण, विद्युत-संरक्षण, भूमि-संरक्षण, वृक्षारोपण, मितव्ययता, प्रकृति से प्रेम आदि विषयों के महत्व से परिपुष्ट किया जाना चाहिए। भारत का भविष्यरूपी पौधा कक्षाओं में ही पल्ववित एवं पुष्पित हो रहा है, तो हम सभी का यह दायित्व है कि इस वर्तमान पीढ़ी को सही राह दिखाएं तथा उनमें सत्यभाषिता, मितभाषिता एवं ईमानदारी जैसे जीवन मूल्य विकसित किए जाएं।
विश्व को आभामय बनाने का करें प्रयत्न
लाल बहादुर शास्त्री जी एक बार भुवनेश्वर में एक कपड़े के शोरूम में गए। जिसमें लगी बेशकीमती साड़ियां देखकर उन्होंने शोरूम के मालिक से कहा कि ये साड़ियां अत्यंत सुंदर एवं आकर्षक हैं, इन साड़ियों की कीमती क्या है? मालिक ने उनका आदर करते हुए कहा कि आप तो देश के प्रधानमंत्री हैं, ये साड़ियां मैं आपको उपहार में दे दूंगा। शास्त्री जी ने विनम्रता से कहा, मेरी जितनी हैसियत है? मैं उतनी ही साड़ियां खरीदूंगा, लेकिन आपसे उपहार स्वीकार नहीं करूंगा। तो ऐसे थे ईमानदारी एवं स्वाभिमान के प्रतीक आदरणीय शास्त्रीजी। तो आज की वर्तमान पीढ़ी को भी शास्त्री जी के चरित्र से शिक्षा लेनी चाहिए तथा ईमानदारी एवं मनस्विता जैसे जीवन मूल्यों को अपनाकर न केवल अपने जीवन को यशस्वी बनाना चाहिए बल्कि अपने आचरण एवं चरित्र की सुगंध से सम्पूर्ण विश्व को आभामय बनाने के विषय में प्रयत्न करना चाहिए।
- डा. एचएस वशिष्ठ, प्रधानाचार्य, दिल्ली पब्लिक स्कूल