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कुचेसर के किले की दीवारों में दर्ज है गौरवशाली इतिहास

बुलंदशहर की जमीन पर क्रांति का बिगुल बजाने और जंग-ए-आजादी में अग्रणी मिका निभाने वाले वीरों की वीरता का साक्षी है कुचेसर का मड फोर्ट।

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Nov 2019 11:30 PM (IST)Updated: Fri, 22 Nov 2019 11:30 PM (IST)
कुचेसर के किले की दीवारों में दर्ज है गौरवशाली इतिहास
कुचेसर के किले की दीवारों में दर्ज है गौरवशाली इतिहास

बुलंदशहर, जेएनएन : बुलंदशहर की जमीन पर क्रांति का बिगुल बजाने और जंग-ए-आजादी में अग्रणी मिका निभाने वाले वीरों की वीरता का साक्षी है कुचेसर का मड फोर्ट। करीब दो सदियों से सीना तान कर खड़े इस किले की दीवारों ने आजादी के दीवानों को अंग्रेजों को ललकारने के लिए तैयार होते देखा है। जाट बिरादरी की जांबाजी के इतिहास को अपने अंदर समेटे मड फोर्ट आज भी अपने वैभवशाली अतीत को संजोए हुए है।

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मड फोर्ट कुचेसर की सरपरस्ती में जाट समाज के युवाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। कुचेसर के नवाब राव उमराव व राव तेजपाल क्रांतिकारियों को जंग-ए-आजादी के लिए प्रशिक्षण व सहायता देते थे। कुचेसर के नवाबों ने यहां स्वतंत्रता आंदोलन की जमीन तैयार की थी। बात किले के निर्माण की करें तो वर्ष 1734 में राजपूताना शैली में किले का निर्माण हुआ था। उस समय इस क्षेत्र पर घुमंतू सरदार कंचन शाह का एकाधिकार था। उसके बाद राजस्थान के जाट घराने के भोपाल सिंह व गिरवा सिंह ने कुचेसर पर कब्जा कर लिया। झील और सरोवर के बीच स्थित होने के कारण किले को कुचेसर का किला कहा गया। वर्तमान में इस किले में कई फिल्मों की शूटिग भी हो चुकी है और देश-विदेश से पर्यटक इस किले को देखने के लिए आते हैं।

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क्रांतिकारियों को दिया जाता था प्रशिक्षण

किले के पास ही स्थित बाग में निशाने बाजी व सुरक्षा का प्रशिक्षण दिया जाता था। किले के अंदर एक सिरे पर मसूरी बुर्जी आज भी स्थित है। इसके विषय में कहा जाता है कि क्रांति की मशाल की लौ तीव्र करने की रणनीति यहीं बनाई जाती थी। जागीरदार परिवार की रानी राजवंश कौर खालसा पंथ में विश्वास रखती थीं। इस लिए उन्होंने यहां एक गुरुद्वारे का भी निर्माण कराया था। किले में ही देवी माता का सदियों पुराना मंदिर है जहां मेला लगता है।


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