पाक में आठ किलोमीटर घुसकर दिया था जवाब
हमारे देश पर जब-जब दुश्मनों ने हमला किया भारतीय वीर सैनिकों ने उन्हें हर बार ही करारा जवाब दिया है। ऐसा ही इंडो-पाक युद्ध 1965 में भी हुआ था। इस युद्ध में जिले के मेजर हरबीर सिंह वीरता से दुश्मनों को
बुलंदशहर, जेएनएन। हमारे देश पर जब-जब दुश्मनों ने हमला किया, भारतीय वीर सैनिकों ने उन्हें हर बार ही करारा जवाब दिया है। ऐसा ही इंडो-पाक युद्ध 1965 में भी हुआ था। इस युद्ध में जिले के मेजर हरबीर सिंह ने वीरता से दुश्मनों को नाको-चने चबा दिए थे। उन्होंने अपनी टुकड़ी के साथ पाकिस्तान में आठ किमी घुसकर जवाब दिया था। इस दौरान वह घायल भी हुए, लेकिन दुश्मनों को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था।
शहर में स्याना रोड स्थित कुदेना गांव निवासी पूर्व मेजर हरबीर सिंह दिसंबर 1962 में तीसरी गोरखा राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद तैनात हुए थे। ट्रेनिग पूरी करने के बाद उनकी तैनाती कश्मीर में कर दी गई। सितंबर 1965 में इंडो-पाक युद्ध शुरू हो गया। उस समय उन्हें अमृतसर के लाहौर सेक्टर में भेज दिया गया। उनकी टुकड़ी ने बकलो डलहोजी नामक स्थान पर कैंप किया। किसी तरह उनके कैंप की जानकारी पाक सेना को मिल गई। पांच सितंबर को पाक ने उनके कैंप पर हमला कर दिया। वह हमले का जवाब देते हुए आगे बढ़ते रहे। पता ही नहीं चला कि वह कब पाक में आठ किलोमीटर तक घुस गए।
गोली लगने से हो गए थे घायल
नौ या दस सितंबर की रात वह पाक से अपने देश की सीमा की ओर कुछ जरूरी सामान लेने आ रहे थे। उस समय उनके साथ आठ से दस जवान थे। तभी झाड़ियों मे छुपे पाक सैनिकों ने उन पर अंधाधुंध फायरिग कर दी। इस फायरिग में उनका एक जवान शहीद हो गया, जबकि उन्हें जांघ में गोली लगने से घायल हो गए। एक अन्य जवान भी घायल हुआ, लेकिन हमलावरों को लगातार जवाब देते रहे। रात की घटना थी। पता नहीं चल सका कि पाक सैनिक मरे या फिर भाग गए।
ट्रेन पर भी हुआ था हमला
घायल होने के बाद बहुत से सैनिकों को अंबाला भेज दिया गया। उनमें हरबीर सिंह भी शामिल थे। उन्होंने बताया कि जब रात में ट्रेन अमृतसर से अंबाला के लिए चली तो उसकी सभी लाइट बंद कर दी गई थी। इसके बाद भी पाक सैनिकों को आभास हो गया और उन्होंने ट्रेन पर हमला बोल दिया। किसी तरह ट्रेन अंबाला पहुंची तो घायल सैनिकों को अस्पताल में भर्ती कराया। यहां सैनिकों से मिलने प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री आए। उपचार के बाद उन्होंने दो माह की छुट्टी ले ली। छुट्टी काटकर वापस ड्यूटी पहुंचे तो स्वयं को शारीरिक रूप से स्वस्थ महसूस नहीं कर पा रहे थे। कुछ साल ड्यूटी करते रहे, शरीर में कई परेशानियां आती रहीं। 1969 में चीफ आफ द आर्मी स्टाफ का प्रशस्ति पत्र देकर विभाग ने उन्हें सम्मानित भी किया। एक जुलाई 1983 में 20 साल पूरे होने पर स्वेच्छा से रिटायरमेंट ले लिया था।
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