श्रीराम कथा में भरतमिलाप की कथा सुनकर भाव विभोर हुए श्रद्धालु
कोरोन काल के चलते इस वर्ष श्रीरामलीला कमेटी द्वारा शारीरिक दूरी का पालन करते हुए नगर के गंगा मंदिर में ही श्रीराम कथा का आयोजन कराया जा रहा है। शनिवार को श्रीराम कथा में भरत का प्रजा सहित वन गमन और रामचंद्र जी की चरण पादुका लेकर अयोध्या वापस लौटने का वर्णन हुआ।
बुलंदशहर, जेएनएन। कोरोन काल के चलते इस वर्ष श्रीरामलीला कमेटी द्वारा शारीरिक दूरी का पालन करते हुए नगर के गंगा मंदिर में ही श्रीराम कथा का आयोजन कराया जा रहा है। शनिवार को श्रीराम कथा में भरत का प्रजा सहित वन गमन और रामचंद्र जी की चरण पादुका लेकर अयोध्या वापस लौटने का वर्णन हुआ। जिसे सुनकर उपस्थित लोग भाव विभोर हो गए।
कथा वाचक वेद प्रकाश और अनिल कुमार ने शनिवार दोपहर श्रीराम-भरत मिलन का वर्णन शुरू किया। उन्होंने बताया कि भरत जनकपुरी से अयोध्या पहुंचे। जहां उन्हें श्रीराम नहीं मिले। जानकारी जुटाने पर उन्हें मालूम हुआ कि राजा दशरथ ने कैकेई माता के वचनों के चलते श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास दे दिया है। जिसके बाद भरत अपनी माता कैकेई से नाराज होकर प्रजा सहित वन के लिए निकल पड़े। भरत के आने की सूचना पर लक्ष्मण क्रोधित हो जाते हैं। जिन्हें श्रीराम अपने वचनों से लक्ष्मण को भरत के प्रेम के विषय में अवगत कराते हैं। वन में श्रीराम से मिलने के बाद भरत उनसे वापस अयोध्या चलने का आग्रह करते हैं। वहीं पिता के वचनों का पालन करते हुए श्रीराम ने अयोध्या चलने से साफ इंकार कर दिया। इसके बाद भरत श्रीराम की चरण पादुका लेकर अयोध्या वापस आ गए। जहां लाकर चरणपादुका को सिंहासन पर रख दिया। साथ ही प्रतिज्ञा ली कि भगवान श्रीराम के अयोध्या वापस नहीं आने तक वह जमीन पर ही सोएंगे। श्रीराम कथा में भरत मिलाप को देखकर कमेटी के सदस्य भाव विभोर हो गए। इस दौरान कमेटी के प्रधान उमाशंकर अग्रवाल, सचिव नंद किशोर शर्मा, जनरल मैनेजर चंद्रपाल सिंह साहनी, अरुण कुमार, अशोक कुमार और नवीन कुमार आदि मौजूद रहे।