सामाजिक बंधन दरकिनार, पति को दी मुखाग्नि
सामाजिक परंपरा और शास्त्रों के मुताबिक तो बेटा ही पिता को मुखाग्नि देता है लेकिन शहर की शिक्षिका ने सभी परंपरा और सामाजिक बंधनों को दरकिनार कर पति की अर्थी को न सिर्फ कंधा दिया बल्कि चिता को मुखाग्नि भी दी।
बुलंदशहर, जेएनएन। सामाजिक परंपरा और शास्त्रों के मुताबिक तो बेटा ही पिता को मुखाग्नि देता है, लेकिन शहर की शिक्षिका ने सभी परंपरा और सामाजिक बंधनों को दरकिनार कर पति की अर्थी को न सिर्फ कंधा दिया, बल्कि चिता को मुखाग्नि भी दी। शवयात्रा से लेकर मुखाग्नि देने तक लॉकडाउन के नियमों का पालन भी किया।
शहर के सिविल लाइन कालोनी में शिक्षक कृपाल चंद शर्मा अपनी पत्नी निशि शर्मा के साथ रहते थे। दोनों शहर के एक निजी स्कूल में शिक्षक रहे। रविवार सुबह 68 वर्षीय कृपाल सिंह का निधन हो गया। पति की मौत की खबर निशि ने अपने परिचित और रिश्तेदारों को दी। लेकिन लॉकडाउन के चलते अधिकांश लोग नहीं पहुंच सके। मोहल्ले के लोग आए। इसके बाद दाहसंस्कार की तैयारी शुरू हुई, तो चिता को मुखाग्नि कौन देगा? इस सवाल को लेकर लोगों में सुगबुगाहट होने लगी, क्योंकि शिक्षक दंपती के कोई संतान नहीं थी। कुछ लोगों ने बात रखी, कि वैसे तो बेटा ही मुखाग्नि देता है। इसके बाद लोगों ने निशि से पूछा तो उसने कहा कि संतान नहीं तो क्या हुआ मैं उनकी अद्र्धागिनी हूं। दोनों जिंदगी भर एक-दूसरे के लिए जीए। कोई नहीं बल्कि मैं स्वयं पति का अंतिम संस्कार करूंगी। इसके बाद सभी के प्रश्नों पर विराम लग गया। लोगों ने अर्थी बनाई। जब चार लोग एकत्र हुए तो सबसे पहले पत्नी आगे आई और पति की अर्थी को कंधा दिया। शवयात्रा काली नदी श्मशान घाट पहुंची। यहां निशि ने पति को मुखाग्नि दी। निशि की बहन रमा और मालती भी श्मशान तक साथ गईं। परिवार 38 वर्षो से गायत्री संस्कार पीठ से भी जुड़ा है।