Bulandshahar: रेबीज दिवस पर विशेष- रोजाना सामने आ रहे कुत्ते काटे के मामले, हर माह खर्च हो रहे 24 लाख रुपये
सरकारी आंकड़ों की बात करें तो जिला अस्पताल और जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर 6500 से अधिक डोज खर्च हो रही हैं। इसके अलावा निजी अस्पतालों और मेडिकल स्टोरों पर भी लगभग दो हजार डोज खर्च हो रही हैं।
बुलंदशहर [जगमोहन शर्मा]। आवारा कुत्तों और बंदरों के कारण हर माह एआरवी (एंटी रैबीज वैक्सीन) की 8200 से अधिक डोज खर्च हो रही हैं। इस पर स्वास्थ्य विभाग और आमजन का हर माह 24 लाख रुपये से अधिक खर्च हो रहा है, जबकि वैक्सीनेशन के लिए किराया और समय भी बर्बाद हो रहा है। बावजूद इसके सरकारी मशीनरी ध्यान नहीं दे रही है। जिम्मेदार अफसर ध्यान दें तो एआरवी पर खर्च होने वाला बजट स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने पर खर्च हो सकता है।
सरकारी आंकड़ों की बात करें तो जिला अस्पताल और जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर 6500 से अधिक डोज खर्च हो रही हैं। इसके अलावा निजी अस्पतालों और मेडिकल स्टोरों पर भी लगभग दो हजार डोज खर्च हो रही हैं।
स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक कुत्ते, बंदर और बिल्ली के काटने पर जिलेभर के मरीजों पर 24 लाख रुपये से अधिक खर्च होता है। बावजूद इसके कुत्तों व बंदरों को न पकड़ा जा रहा है और न ही इनकी नसबंदी की जी रही है। सबसे ज्यादा आतंक आवारा कुत्तों का रहता है।
यदि इस समस्या का निवारण हो जाए तो इस बजट को अन्य स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरस्त करने पर खर्च किया जा सकता है, लेकिन जिम्मेदार विभाग के अधिकारी इस तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं, जबकि कई बार इसको लेकर मांग भी उठाई जा चुकी है।
एआरवी के लिए चालीस किलोमीटर की दौड़
कुत्तों के काटने से ज्यादा दर्द मरीजों को तब होता है, जब उनको एंटी रैबीज का इंजेक्शन लगवाने के लिए चालीस किलोमीटर तक की दौड़ लगानी पड़ती है। क्योंकि जिलेभर के सीएचसी और पीएचसी पर एआरवी की सप्लाई आए दिन लड़खड़ाई रहती है।
सिकंदराबाद, खुर्जा, अनूपशहर, स्याना और पहासू तक के मरीज जिला अस्पताल आते हैं। जिला मुख्यालय से सिकंदराबाद बीस किलोमीटर है, जबकि पहासू 35 किलोमीटर और डिबाई 40 किलोमीटर दूर स्थित है। देहात क्षेत्र की अधिकतर सीएचसी और पीएचसी पर इंजेक्शन का अकाल रहता है।
लाइसेंस जारी नहीं करती पालिका
पालिका ने आज तक पालतू कुत्ता रखने के लिए किसी व्यक्ति के लिए कोई लाइसेंस नहीं दिया है। कर्मचारियों और अधिकारियों को इसकी जानकारी भी नहीं है। शहर और देहात में कितने आवारा कुत्ते होंगे, इसकी भी पालिका के पास कोई जानकारी नहीं है। कुत्तों की नसबंदी कराने का भी पालिका के पास कोई इंतजाम नहीं है। ऐसे में कुत्ते कैसे पकड़े जाएंगे और कैसे इनकी बढ़ती संख्या रुकेगी।
गर्दन से ऊपर काटा तो दिल्ली की दौड़
आवारा कुत्ते कई बार गर्दन से ऊपर हमला करते हैं तो घायल व्यक्ति को दिल्ली की दौड़ लगानी पड़ती है, क्योंकि गर्दन से ऊपर काटने पर मरीज को एआरएस (एंटी रैबीज सीरम) लगता है। एआरएस प्रदेश के अस्पतालों में उपलब्ध नहीं है। यह केवल दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध है। एआरएस लगवाने के लिए सरकारी अस्पताल से रेफर कराकर मरीज को जाना पड़ता है।
इंफो
- 350 रुपये में बाजार में मिलता है एंटी रैबीज इंजेक्शन
- 150 लोगों को जिला अस्पताल में प्रतिदिन लगते हैं एआरवी
- 10 दिन के भीतर मरता है रैबीज वाला कुत्ता
- 40 किलोमीटर दौड़ते हैं इंजेक्शन लगवाने के लिए लोग
- 05 इंजेक्शन लगवाने पड़ते हैं सरकारी अस्पताल में
इन्होंने कहा…
सीएमओ डा. विनय कुमार सिंह ने कहा, कुत्ते, बंदर और बिल्ली काटने पर एआरवी लगती है। वैक्सीन, सिरिंज, डिटोल काटन पर विभाग लगभग बीस लाख रुपये खर्च हो जाते हैं। कुत्ते और बंदर पकड़ने के साथ ही इनकी संख्या नियंत्रित करने के लिए इनकी नसबंदी भी होनी चाहिए। कुत्ता काटने पर 48 घंटे के भीतर इंजेक्शन जरूर लगवाएं।