अहमदगढ़ की पहचान बना सिघाड़ा, खुशहाल हो रहे किसान
अहमदगढ़ क्षेत्र के किसानों ने खेती-किसानी का रूप बदलकर कामयाबी की नई इबादत लिखी है । किसानों की सोच में हुए बदलाव के कारण जहां अन्य किसानों की किस्मत भी बदली वहीं अब अहमदगढ़ की पहचान सिघाड़ा उत्पादक गांव के रूप में होने लगी है ।
बुलंदशहर, जेएनएन। अहमदगढ़ क्षेत्र के किसानों ने खेती-किसानी का रूप बदलकर कामयाबी की नई इबादत लिखी है । किसानों की सोच में हुए बदलाव के कारण जहां अन्य किसानों की किस्मत भी बदली, वहीं अब अहमदगढ़ की पहचान सिघाड़ा उत्पादक गांव के रूप में होने लगी है । यहां किसानों ने बड़े स्तर पर सिघाड़े की खेती को अपने खेतों में डॉल बनाकर अपनी अर्थव्यवस्था को भी मजबूत किया है।
अहमदगढ़ निवासी प्रगतिशील किसान रामकिशोर कश्यप और जयंती प्रसाद कश्यप ने एक दशक पहले सिघाड़े की खेती की शुरुआत की थी । उपजाऊ जमीन पर सिघाड़े की खेती शुरू करने पर अन्य किसानों ने तब उपहास उड़ाया। लेकिन समय बदला और अहमदगढ़ क्षेत्र में तमाम किसान सिघाड़े की खेती कर रहे हैं । सिघाड़ा उत्पादक किसान बताते हैं कि पहले से मुकाबले में अब परंपरागत खेती करना काफी मुश्किल भरा हो गया है। आलू, मक्का, धान, गेहूं, गन्ने की खेती अब किसानों के लिए अधिक लाभकारी नहीं रही । लगातार महंगी होती खेती के कारण ही किसानों का परंपरागत खेती से मोहभंग हो रहा है। बढ़ रही आमदनी
सिघाड़ा उत्पादक किसानों के अनुसार एक बीघा जमीन सिघाड़े की फसल तैयार करने में दो हजार की लागत आती है और फसल तैयार होने पर 15 से 20 हजार की आमदनी आसानी से हो जाती है। सीजन में सिघाड़ा 30-35 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकता है और फसल को पशुओं द्वारा भी कोई नुकसान नहीं होता है।
पानी दे रही है मध्य गंगा नहर
किसान बाबूलाल गिरि का कहना है की सिघाड़े की खेती के लिए नहर के आसपास की भूमि उपयोगी है। लखावटी ब्रांच की मध्य गंग नहर अहमदगढ़, मामऊ, ढकनंगला, पापड़ी, दारापुर, सालबानपुर, सेदगढी, मौरजपुर, मुरादपुर, बुधपुर आदि गांव के मध्य होकर गुजर रही है नहर में पानी आते ही किसान अपने- अपने खेतों की डोल ऊंची कर उसमें करीब चार फीट तक पानी भर देते हैं । इसके बाद खेतों में सिघाड़े की बेल डाल दी जाती है। खेती से पहले किया प्रयोग
किसान जगदीश कश्यप बताते हैं कि पहले चार बीघा भूमि पर सिघाड़ा उगाकर देखा। पहले ही प्रयास में फायदा होने पर 20-20 बीघा तक भूमि को सिघाड़ा के लिए तालाब बना दिया। मात्र तीन माह में ही सिघाड़े की फसल तैयार हो जाती है। सबसे बड़ा लाभ है कि नगदी फसल होने के कारण कीमत भी मौके पर ही मिल जाती है।