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यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमन्ते तत्र देवता

बुलंदशहर : भारतीय समाज में महिलाओं की दशा और दिशा पर विचार किया जाए तो सर्वविदित है कि भारत में महिल

By JagranEdited By: Fri, 15 Sep 2017 09:55 PM (IST)
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमन्ते तत्र देवता
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमन्ते तत्र देवता

बुलंदशहर : भारतीय समाज में महिलाओं की दशा और दिशा पर विचार किया जाए तो सर्वविदित है कि भारत में महिलाओं को देवी का दर्जा दिया जाता है। हम सब प्राचीन काल से ही ये पंक्तियां पढ़ते और सुनते आए हैं, यत्र नार्यस्तु पूज्यनते, रमन्ते तत्र देवता। अर्थात जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। प्राचीन काल में अपाला, घोषा, लोपामुद्रा, गार्गी, जैसी विदुषियों ने वर्चस्व कायम किया था। यदि आधुनिक युग की बात की जाए तो हमारे देश में ही सरोजनी नायडू, इंदिरा गांधी, कल्पना चावला, सानिया मिर्जा, मेरी काम, मदर टेरेसा जैसी महिलाओं ने अलग-अलग क्षेत्रों में अपना नाम रोशन कर समस्त मानव जाति के लिए अनूठी मिसाल कायम की है।

आज कुल तुच्छ मानसिकता के लोग महिलाओं को अपनी बराबरी के दर्जे को भले ही नकारते रहते हों लेकिन नारी अब सौंदर्य की वस्तु नहीं है। वह सदा से खुद को हर क्षेत्र में अपने बल पर साबित करती आई है। इसलिए उसे बराबरी का दर्जा क्यों नहीं मिलना चाहिए? आज नारी अशिक्षा, दहेज उत्पीड़न, भ्रूण हत्या जैसी समस्याओं से ही नहीं बल्कि असमानता का भी शिकार हो रही हैं। हम भले ही वैज्ञानिक युग में जीने की दुहाई देते हों लेकिन महिलाओं को लेकर मानसिकता बदलने में सफलता नहीं मिल सकी है। नारियों के प्रति वही तुच्छ मानसिकता आज भी हमारे देश देश को पीछे धकेल रही है।

भ्रूण से लेकर मृत्यु तक महिला को हेय ²ष्टि से देखा जाता है। जबकि पुरुषों को महिला हमेशा सम्मान देती है। अक्सर देखा जाता है कि महिलाएं परिवार के साथ रहें तो मां-बाप व भाई-बहन की कैद में रहती हैं और शादी के बाद ससुराल वाले उसे ¨पजरे में कैद कर लेते हैं। इतिहास गवाह है। जब भी किसी महिला ने इन असमानता की बेड़ियों को तोड़ा है, उसने तभी इतिहास रच दिया। उसे जब भी उसके परिवार वालों ने मौका दिया, उसने तभी अपने परिवार, समाज व देश का नाम रोशन कर दिया। शर्म तो तब आती है, जब एक महिला ही अपनी पुत्री व पुत्र में भेद करके लालन-पालन करती है। पुत्र को स्कूल जाने के लिए पूरी आजादी और पुत्री को इज्जत की खातिर घर की चारदीवारी में कैद कर लेती है। इससे साफ जाहिर है कि महिलाओं के प्रति पुरुषों में असमान मानसिकता पैदा करने में महिलाओं का भी पूरा योगदान रहता है।

बड़ी-बड़ी सभाओं में नेता, अभिनेता और अधिकारी महिलाओं की आजादी को लेकर लच्छेदार भाषण देकर वाह-वाही तो लूट लेते हैं लेकिन वास्तविकता क्या है, हर कोई जानता है। कानून बनाकर या विधेयक मात्र से ही महिलाओं को समानता नहीं मिल सकती। इसके लिए सरकार को व्यापक कदम उठाने होंगे। महिलाओं को स्वयं ही जागरूक होकर सबसे पहले अपने परिवार में ही विरोध करना होगा। किसी विद्वान ने कहा है कि अधिकार मिलते नहीं, छीने जाते हैं। इसी तरह महिलाओं का अधिकार है कि उन्हें समाज में पुरुषों के बराबर ही देखा जाए। अधिकार लेने के पथ पर महिलाएं चल भी रही हैं और उन्हें विषम परिस्थितियों में सफलता भी मिल रही है।

- डा. सुहेल अहमद, प्रधानाचार्य मुस्लिम इंटर कालेज बुलंदशहर।