Move to Jagran APP

चरखे से निकलेगा महिलाओं की खुशहाली का रास्ता

फैशन के इस दौर में भी खादी का क्रेज कम नहीं है। खादी कपड़े बनाने के लिए गांव-गांव अंबर चरखे लगाए जा रहे हैं ताकि महिलाओं को रोजगार मिले। 70 के दशक में घर की बुजुर्ग महिलाएं इन चरखों पर सूत काता करती थीं। गांव-गांव में खादी निर्माण को सूत बनाने के लिए लकड़ी के बने सिंगल तकुवे के चरखे मिला करते थे।

By JagranEdited By: Published: Wed, 29 Sep 2021 07:30 AM (IST)Updated: Wed, 29 Sep 2021 07:30 AM (IST)
चरखे से निकलेगा महिलाओं की खुशहाली का रास्ता

जेएनएन, बिजनौर। फैशन के इस दौर में भी खादी का क्रेज कम नहीं है। खादी कपड़े बनाने के लिए गांव-गांव अंबर चरखे लगाए जा रहे हैं, ताकि महिलाओं को रोजगार मिले। 70 के दशक में घर की बुजुर्ग महिलाएं इन चरखों पर सूत काता करती थीं। गांव-गांव में खादी निर्माण को सूत बनाने के लिए लकड़ी के बने सिंगल तकुवे के चरखे मिला करते थे।

loksabha election banner

घर की बुजुर्ग दादी, नानी और ताई इन चरखों पर घरेलू कामकाज से निपटने के बाद सूत की कुकड़ी तैयार करती थी। बढ़ती महंगाई और कम मेहनताना मिलने की वजह से अब दादी-नानी के चरखे इतिहास की बात हो गई। सूत की क्वालिटी की अच्छी नहीं होने की वजह कुछ सालों तक सिंथेटिक कपड़ों का जादू भी लोगों के सिर-चढ़कर बोला, लेकिन सिथेटिक कपड़े पर एक बार फिर आरामदायक खादी भारी पड़ गई। खादी-ग्रामोद्योग विभाग ने गांव-गांव में अंबर चरखा को विकल्प बनाकर रूई से बेहतर क्वालिटी की सूत का धागा तैयार कराने काम शुरू कराया। इस अंबर चरखे पर एक साथ आठ तकुवों पर कताई होती है। प्रधान की गारंटी पर मिलता अंबर चरखा

खादी ग्रामोद्योग आश्रम जैतरा के सचिव जयवीर सिंह के अनुसार अंबर चरखे से तैयार सूत के धागे से हाई क्वालिटी की खादी तैयार होती है। अंबर चरखे पर एक बार में आठ महिलाओं की बराबर सूत की कताई जाती है। आठ तकुवे एक साथ चरखे पर चलते हैं, तो सूत का उत्पादन भी बढ़ता है। अंबर चरखे की कीमत करीब 17 हजार रुपये है, लेकिन यह चरखा गांव में ग्राम प्रधान या किसी प्रभावशाली व्यक्ति की गारंटी पर दिया जाता है। 8000 प्रतिमाह कमा सकते हैं कामागर

अंबर चरखे पर एक परिवार की महिलाएं प्रतिदिन 250 से 300 रुपये तक कमाता है। यदि परिवार नियमित कताई करता है, तो वह आठ से नौ हजार रुपये तक आसानी से कमा सकता है, जबकि गुजरे जमाने में लकड़ी के चरखे पर एक तकुवे पर सूत की कताई करने पर बमुश्किल चार से पांच सौ रुपये ही मेहनताना मिल पाता था। सचिव की मानें तो मोहम्मदपुर देवमल, अल्हैपुर, चकराजमल समेत कई अन्य स्थानों पर खादी ग्रामोद्योग विकास भंडार संचालित है। इन सभी खादी ग्रामोद्योग विकास भंडारों दिए एक हजार अंबर चरखों पर हजारों परिवार अपनी आजीविका कमा रहे है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.