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अभिव्यक्ति की आजादी के 'ध्वजधावक' बने डा. सत्येंद्र

चांदपुर(बिजनौर): भ्रष्टाचार, उत्पीड़न व अन्य सामाजिक कुरीतियां समाज को खोखला करती जा रही हैं। लोग भी कहीं न कहीं इससे पीड़ित नजर आते हैं। लेकिन, डा. सत्येंद्र शर्मा ने समय-समय पर समाज में फैले भ्रष्टतंत्र और अन्य बुराइयों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 22 Jan 2019 10:25 PM (IST)Updated: Tue, 22 Jan 2019 10:25 PM (IST)
अभिव्यक्ति की आजादी के 'ध्वजधावक' बने डा. सत्येंद्र

चांदपुर(बिजनौर): भ्रष्टाचार, उत्पीड़न व अन्य सामाजिक कुरीतियां समाज को खोखला करती जा रही हैं। लोग भी कहीं न कहीं इससे पीड़ित नजर आते हैं। लेकिन, डा. सत्येंद्र शर्मा ने समय-समय पर समाज में फैले भ्रष्टतंत्र और अन्य बुराइयों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। इसके लिए चाहे उन्होंने जन आंदोलन का सहारा लेना पड़ा हो या फिर पत्राचार का प्रयोग किया। ऐसे ही कई मुद्दों को लेकर उन्होंने लोगों को अपने अधिकारों का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया है। उनकी मुहिम अभी भी लगातार जारी है। अभिव्यक्ति की आजादी और अधिकारी के लिए वह समय-समय पर मुहिम भी चला रहे हैं।

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मोहल्ला साहूवान निवासी डा. सत्येंद्र शर्मा यूं तो शुरू से ही सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे हैं। वह चिकित्सक होने के साथ-साथ समाज में फैली बुराइयों का भी अपने तरीके से इलाज कर रहे हैं। 75 वर्ष की आयु होने के बाद भी उनका हौंसला कम नजर नहीं आता है। डा. सत्येंद्र शर्मा शुरू से बेबाक रहे हैं। उन्होंने भ्रष्ट तंत्र से लेकर महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ अपने ही तरीके से आवाज उठाई है। उन्होंने इसके लिए धरने और प्रदर्शन के साथ-साथ पत्राचार का सहारा लेकर अधिकारियों व समाज को नींद से जगाया। उन्होंने खुले तौर से सामाजिक बुराई के खिलाफ आवाज उठाई। यही नहीं बिजली, पानी व अन्य उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने को लेकर उन्हें जेल तक भी जाना पड़ा। जेल भी एक बार नहीं बल्कि कई बार। जुलूस भी निकाले और जनता का जगाया। उनका कहना है कि अभिव्यक्ति की आजादी भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों में से एक है। दुनिया भर के कई देश अपने नागरिकों को उनके विचारों और सोच को साझा करने तथा उन्हें सशक्त बनाने के लिए अभिव्यक्ति की आजादी की अनुमति देते हैं।

जब अपनी बेटी ही हुई दहेज लोभियों का शिकार

डा. सत्येंद्र शर्मा भले ही समाज में फैली बुराइयों के खिलाफ आवाज उठा रहे हों, लेकिन करीब 18 वर्ष पूर्व दहेज जैसे कुप्रथा से जूझना पड़ा। उनकी अपनी ही बेटी दहेजलोभियों का शिकार हुई। बताया कि ससुरालियों ने गाड़ी के लिए उनकी बेटी की हत्या कर दी थी। जिसके बाद वह टूट चुके थे, लेकिन उन्होंने इसके खिलाफ आवाज बुलंद की और लगातार महिला आयोग में इसके खिलाफ पत्राचार कर अपने मन की बात रखी। लगातार संघर्ष करते हुए उन्होंने अपनी बेटी के हत्यारों को सजा भी दिलाई। उनका कहना है कि अपने ऊपर होने वाले जुल्म के खिलाफ अवश्य आवाज उठानी चाहिए। जिससे दूसरा भी जागरूक हो।


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