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'मिट्टी' में मिल रही नजीबाबाद की 'माटी कला'

चरनजीत ¨सह, नजीबाबाद विदेशों में नजीबाबाद की माटी कला का डंका बजा चुके कुम्हार परिवार

By JagranEdited By: Published: Fri, 26 Oct 2018 10:19 PM (IST)Updated: Fri, 26 Oct 2018 10:19 PM (IST)
'मिट्टी' में मिल रही नजीबाबाद की 'माटी कला'
'मिट्टी' में मिल रही नजीबाबाद की 'माटी कला'

चरनजीत ¨सह, नजीबाबाद

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विदेशों में नजीबाबाद की माटी कला का डंका बजा चुके कुम्हार परिवारों की मुट्ठी से यह कला रेत की तरह खिसक रही है। भारतीय संस्कृति में रचे-बसे त्योहार और शीतकाल ने ही माटी कला को जीवित कर रखा है।

नजीबाबाद को बसे हुए दो सदियां बीत चुकी हैं। इस ऐतिहासिक शहर को नवाबी इमारतों और यहां की माटी कला ने दूर-दूर तक पहचान दिलाई। माटी कला के साथ सांस लेने वाले कारीगरों की नक्काशी के कारण शहर में सुराही बाजार विकसित हुआ। अंग्रेजी हुकूमत के दौरान यहां के कुम्हारों की तैयार की गई आकर्षक सुराही को विदेश में खासी पहचान मिली। इसके साथ ही नजीबाबाद के सुप्रसिद्ध कारीगर स्वर्गीय रामचंदर को दो दशक पहले राष्ट्रपति से प्रमाण पत्र भी मिल चुका है, लेकिन आधुनिकता के दौर में नजीबाबाद की माटी कला दिनोंदिन पिछड़ती चली गई। अब हालात ये हैं कि कुम्हार इस काम से बचते हुए अन्य कामों में लग चुके हैं।

रफ्ता-रफ्ता घूम रहा चाक

मिट्टी में अपना और परिवार का भविष्य तलाश रहे विजयपाल प्रजापति कहते हैं उन्होंने घर पर होने वाले मिट्टी के कार्य के बीच होश संभाला है और जब तक सांस रहेगी, यह काम करते रहेंगे। लेकिन चुनौतियों, संसाधनों के अभाव और कम मुनाफे से उन्हें एक सबक तो जरूर मिला है कि इस काम में कुम्हार बिरादरी का गुजारा होने वाला नहीं है।

आर्टीफीशियल क्रॉकरी ने तोड़ा दम

कुम्हारी कला को छोड़ चुके 55 वर्षीय चंद्रप्रकाश कहते हैं कि उन्होंने 30 वर्षों तक मिट्टी से असंख्य साजो-सामान बनाए, मगर नहीं बना सके तो खुद का भविष्य। इस स्थिति के लिए काफी हद तक मशीनों से तैयार होने वाली गत्ता और प्लास्टिक की आर्टीफीशियल क्रॉकरी जिम्मेदार है।

आटे की तरह गूंथती हूं मिट्टी

प्रजापति परिवार की गृहिणी बेबी कहती है कि वह घर के कामकाज से ज्यादा समय माटी कला को देती है। मिट्टी को अपने हाथों से आटे की तरह गूंथती है। लेकिन जब बात मुनाफे की आती है, तो शायद कार्यक्रमों में लगने वाला एक रसोईया भी उससे ज्यादा कमा लेता होगा।

पट्टा आवंटित की प्राथमिकता

पालिका परिषद के वार्ड सदस्य नरेंद्र प्रजापति ने माना कि प्रजापति समाज का कोई तालाब न होने से मिट्टी के लिए मशक्कत करनी पड़ती है। उन्होंने इस संबंध में पालिका बोर्ड में प्रस्ताव रखने और प्रशासन से संपर्क कर तालाब का पट्टा आवंटित करने के प्रयासों की बात कही।


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