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जल संरक्षण व पौधों की देखभाल के लिए किया आविष्कार

पर्यावरण व जल संरक्षण वर्तमान युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। पानी न मिलने व देखभाल के अभाव में पौधे दम तोड़ देते हैं। इसके समाधान के लिए क्षेत्र निवासी सहायक अभियंता हेमंत कुमार ने एक उपकरण का आविष्कार किया है। इसे वाटर एंड एयर डिस्पेंसर नाम दिया गया है। इसका पूरा नाम कंट्रोल्ड वाटर एंड एयर डिस्पेंसर फॉर इनडोर एंड आउटडोर प्लांट है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 23 Aug 2021 10:44 AM (IST)Updated: Mon, 23 Aug 2021 10:44 AM (IST)
जल संरक्षण व पौधों की देखभाल के लिए किया आविष्कार
जल संरक्षण व पौधों की देखभाल के लिए किया आविष्कार

बिजनौर, राहुल श्याम

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पर्यावरण व जल संरक्षण वर्तमान युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। पानी न मिलने व देखभाल के अभाव में पौधे दम तोड़ देते हैं। इसके समाधान के लिए क्षेत्र निवासी सहायक अभियंता हेमंत कुमार ने एक उपकरण का आविष्कार किया है। इसे वाटर एंड एयर डिस्पेंसर नाम दिया गया है। इसका पूरा नाम कंट्रोल्ड वाटर एंड एयर डिस्पेंसर फॉर इनडोर एंड आउटडोर प्लांट है। इसके लिए भारत सरकार के बौद्धिक संपदा केंद्र द्वारा पेटेंट भी प्राप्त हो चुका है। उपकरण से गमले के एकल पौधे सहित सड़क किनारे लगे पौधों की महीनों तक स्वत: सिचाई की जा सकती है। यह सिचाई में पानी की बर्बादी को भी 20 प्रतिशत तक कम करता है।

वर्तमान में सिचाई विभाग के केंद्रीय कार्यालय में कार्यरत सहायक अभियंता हेमंत कुमार का धामपुर से नाता है। उन्होंने आरएसएम डिग्री कालेज में बीएससी एजी में प्रवेश लिया था, लेकिन इसी दौरान वे रुड़की स्थित एक कालेज से सिविल इंजीनियरिग में पढ़ाई करने चले गए। हेमंत कुमार मूल रूप से बिजनौर के गांव फीना निवासी हैं। वर्ष 2016 में चित्रकूट में सिचाई विभाग में जेई के पद पर नियुक्त हुए।

कैसे मिली प्रेरणा

हेमंत बताते हैं कि बचपन से बागवानी का शौक है। लखनऊ स्थित फ्लैट में भी बहुत से पौधे लगाए हैं। एक बार कई दिनों के लिए बाहर जाना पड़ा, लौटकर सभी पौधे सूख चुके थे। यहीं से उनके मन में ऐसे उपकरण के आविष्कार के विचार ने जन्म लिया। लंबे शोध के बाद उन्होंने वाटर एंड एयर डिस्पेंसर तैयार किया और वर्ष 2017 में पेटेंट के लिए आवेदन किया। इसी वर्ष 23 जून को पेटेंट प्राप्त हो गया, जिसका पेटेंट नंबर 370026 है।

उपकरण की कार्य विधि

उपकरण गमले में लगे एकल पौधे सहित बाहर लगे बड़े पौधों की महीनों तक स्वत: सिचाई करने में सक्षम है। पांच-छह फीट ऊंचाई के पौधों के लिए भी उपयोगी है। हेमंत बताते हैं कि उपकरण को बिजली, सेल, सौर ऊर्जा या बाहरी ऊर्जा की आवश्यकता नहीं है। यह पानी की स्टैटिक एनर्जी के सिद्धांत पर काम करता है। इसे दो मुख्य भाग स्टोरेज टैंक और कंट्रोल यूनिट में बांटा गया है। पूरी यूनिट का साइज एक गुना एक फीट जबकि कंट्रोल यूनिट छह गुना छह इंच है। सबसे पहले स्टोरेज टैंक से पानी कंट्रोलिग नॉब में जाता है, जो कंट्रोल चैंबर से पौधे तक पहुंचा है। एक लीटर के स्टोरेज टैंक की क्षमता को जरूरत के हिसाब से बढ़ाया जा सकता है।

कंट्रोलिग नॉब में पौधे की आयु, किस्म, पानी की जरूरत व मौसम के अनुसार 15 मिलीलीटर से एक लीटर प्रतिदिन तक पानी सप्लाई किया जा सकता है। कंट्रोल यूनिट से निकली नली या बत्ती को पौधे की जड़ से जोड़ा जाता है। केशकीय प्रभाव (कैपिलरी एक्टिविटी) के कारण मिट्टी व जड़ पानी की नमी को सोखती रहती है और पौधा जीवित रहता है।

इन्होंने कहा..

यह बहुत सस्ता है। सिगल यूनिट केवल 600 रुपये और डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के साथ करीब 750 रुपये में तैयार हो जाती है। अधिक संख्या में बनने से इसकी कीमत और भी कम होगी। वे सरकार के सहयोग से भी इसे आम जनता तक पहुंचाना चाहते हैं।

हेमंत कुमार


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