दवा कारोबारियों और फार्मासिस्ट के तालमेल से होता है खेल
फार्मासिस्ट आलोक पांडेय के किराए के मकान में मिली लाखों की दवा ने स्वास्थ्य विभाग की पोल खोल कर रख दी है। हकीकत यह है कि दवा कारोबारियों और फार्मासिस्ट के तालमेल से सरकारी दवा वेयर हाउस तक नहीं पहुंच पाता है।
जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर(भदोही): फार्मासिस्ट आलोक पांडेय के किराए के मकान में मिली लाखों की दवा ने स्वास्थ्य विभाग की पोल खोल कर रख दी है। हकीकत यह है कि दवा कारोबारियों और फार्मासिस्ट के तालमेल से सरकारी दवा वेयर हाउस तक नहीं पहुंच पाता है। इसकी मॉनीटरिग के लिए जिले स्तर पर स्वास्थ्य विभाग में कोई टीम भी नहीं बनाई गई है। विभाग इस बड़े मामले की जांच कराने के बजाए ठंडे बस्ते में डाल दिया।
उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लाई कार्पोरेशन के चार्ज से 25 मई को ही फार्मासिस्ट आलोक पांडेय को हटा दिया गया था। वेयर हाउस का चार्ज न मिलने पर डीएम के निर्देश पर एसडीएम की उपस्थिति में ताला तोड़ा गया था। एक माह बाद हटाए गए फार्मासिस्ट के किराए के भवन में कोविड-19 की लाखों की दवा बरामद की गई। फार्मासिस्ट के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए स्वास्थ्य विभाग दवा को वेयर हाउस में रखवा दिया। विभागीय सूत्रों का कहना है कि दवा कारोबारियों और फार्मासिस्ट के तालमेल से सरकारी दवा की कालाबाजारी की जाती है। कार्पोरेशन की ओर से संबंधित फर्म को दवा आपूर्ति का आर्डर दे दिया जाता है। इसके पश्चात संबंधित फर्म के लोग सीधे फार्मासिस्ट से बात करते हैं। फार्मासिस्ट अपने इच्छानुसार जहां चाहे वहां रिसीव कर दवा रखवा देते हैं। इसके बाद वह सीधे बाजार में बेच दिया जाता है। इसकी पुष्टि भी महेंद्र कटरा में बरामद दवा से की जा सकती है। दवा की आपूर्ति हुई और किराए के भवन में दवा रख दी गई लेकिन सीएमओ को इसकी भनक भी नहीं लगी। सीएमओ डा. लक्ष्मी सिंह की बात माने तो तीन माह बाद कंप्यूटर में खुद दवा का रिकार्ड गायब हो जाता है। जानकारों का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग की जांच होती तो इसमें कई अधिकारियों पर भी गाज गिरती। डीएम राजेंद्र प्रसाद ने भी स्वीकार किया कि फार्मासिस्ट की यह बड़ी गलती है कि वह प्राइवेट रूम में दवा कैसे ले गया। इस मामले में कार्रवाई के लिए कहा गया है। 48 घंटे बाद पुलिस हिरासत से छोड़े जाने के बाद हर किसी के जेहन में तरह-तरह के सवाल उठने लगे हैं।