Move to Jagran APP

प्रजातियों के चयन में बरतें सावधानी, बढ़ेगा अरहर का उत्पादन

प्रमुख दलहन फसल अरहर की बोआई का समय आ चुका है। बारिश के बाद किसान तैयारी में लग चुके हैं। किसान उन्नतशील उत्पादन तकनीक अपनाने के साथ विशेषकर बीज के प्रजातियों से लेकर भूमि व उर्वरक प्रबंधन आदि में सावधानी बरतकर उत्पादन बढ़ा सकते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र बेजवां के कृषि प्रसार विशेषज्ञ डा. आरपी चौधरी ने बताया कि अगेती अरहर की 20 जून तक तथा देर से पकने वाली प्रजाति की बोआई जुलाई के प्रथम पखवाड़े में करना उपयुक्त होता है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 16 Jun 2021 09:01 PM (IST)Updated: Wed, 16 Jun 2021 09:01 PM (IST)
प्रजातियों के चयन में बरतें सावधानी, बढ़ेगा अरहर का उत्पादन
प्रजातियों के चयन में बरतें सावधानी, बढ़ेगा अरहर का उत्पादन

जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर (भदोही) : प्रमुख दलहन फसल अरहर की बोआई का समय आ चुका है। बारिश के बाद किसान तैयारी में लग चुके हैं। किसान उन्नतशील उत्पादन तकनीक अपनाने के साथ विशेषकर बीज के प्रजातियों से लेकर भूमि व उर्वरक, प्रबंधन आदि में सावधानी बरतकर उत्पादन बढ़ा सकते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र बेजवां के कृषि प्रसार विशेषज्ञ डा. आरपी चौधरी ने बताया कि अगेती अरहर की 20 जून तक तथा देर से पकने वाली प्रजाति की बोआई जुलाई के प्रथम पखवाड़े में करना उपयुक्त होता है।

loksabha election banner

--------

उन्नतशील प्रजातियां

अगेती फसल के लिए पारस, उपास-120, पूसा-992, टा-21 प्रजाति के बीज उपयुक्त हैं। यह 120 से लेकर 150 दिन में पक कर तैयार हो जाती हैं। इनकी उत्पादन क्षमता प्रति हेक्टेयर 15 से 20 क्विटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि देर से पकने वाली प्रजातियों में- बहार, अमर, आजाद, नरेंद्र अरहर-1, नरेंद्र अरहर-2, मालवीय विकास, मालवीय चमत्कार, राजेंद्र अरहर-1 की बोआई लाभप्रद होगी। 240 से लेकर 260 दिन में तैयार होकर प्रति हेक्टेयर 25-32 उत्पादन दे सकती हैं। अगेती के लिए 12 से 15 किलो तथा देर से पकने वाली प्रजातियों के लिए 8 से 10 किलो बीज प्रति हेक्टेयर बोआई के लिए पर्याप्त है।

----------

भूमि का चयन

अरहर की बोआई के लिए बलुई दोमट व दोमट मिट्टी अच्छी होती है। उचित जल निकासयुक्त भूमि तथा हल्के ढालू खेत अरहर की खेती के लिए सर्वोत्तम है। निचले लवणीय तथा क्षारीय भूमि में इसकी खेती अच्छे ढंग से नहीं की जा सकती है। बोआई से पहले मिट्टी पलट हल से जोताई करने के बाद दो-तीन जुताई कल्टीवेटर से करते हुए पाटा लगाकर खेत को तैयार कर लेना चाहिए।

----------

कैसे करें बीज शोधन

मृदा जनित जैसे उकठा एवं जड़ गलन रोगों से बचाव के लिए दो ग्राम थीरम एवं एक ग्राम कार्बेन्डाजिम अथवा 3 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से बीज शोधन किया जा सकता है। जैविक विधि से शोधन के लिए ट्राइकोडरमा 8 से 10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से शोधन करें।

-----------

कैसे करें बोआई

बोआई हमेशा पंक्तियों में करना लाभप्रद होता है। अगेती प्रजाति के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेमी व पौधे से पौधे की दूरी 15 सेमी तथा देर से पकने वाली प्रजाति के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 से 75 सेमी व पौध से पौध की दूरी 25 सेमी होनी चाहिए। बोआई के 20 से 25 दिन बाद सघन पौधों को निकाल कर उचित अंतरण पर कर देना चाहिए। यदि अरहर की बुवाई मेड पर की जाए तो पैदावार अधिक मिलती है।

----------

पोषक तत्व प्रबंधन

अच्छी उपज के लिए 8 से 10 टन गोबर की सड़ी खाद बोआई से 20 से 25 दिन पहले खेत में मिला देना चाहिए। रसायनिक उर्वरक में 15 से 20 किलो नत्रजन, 40 से 45 किलो फास्फोरस, 20 किलो पोटाश तथा 20 किलो सल्फर प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन एवं फास्फोरस की पूर्ति प्रति हेक्टेयर मात्र 100 किलो डीएपी से की जा सकती है। विशिष्ट सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होने पर 15 से 20 किलोग्राम जिक सल्फेट तथा एक से डेढ़ किलो अमोनियम मालीब्डेट प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना लाभकारी होगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.