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भरत का अनुरोध ठुकराया, पिता को दिया वचन निभाया

क्षेत्र के लठिया गांव में चल रहे सात दिवसीय रामलीला में भरत के अनुरोध को ठुकराकर श्रीराम ने पिता की आज्ञा को निभाया। चौथे दिन के श्रीरामलीला मंचन में भरत का ननिहाल से आना खर दूषण वध सूर्पनखा की नाक कटैया व सीता हरण का मंचन हुआ। मंगलवार को मंचन में दशरथ मरण के बाद भरत ननिहाल से वापस आए और श्रीराम को मनाने के लिए नंगे पांव चित्रकूट धाम पहुंचे गए।

By JagranEdited By: Published: Wed, 16 Oct 2019 08:03 PM (IST)Updated: Wed, 16 Oct 2019 08:03 PM (IST)
भरत का अनुरोध ठुकराया,  पिता को दिया वचन निभाया
भरत का अनुरोध ठुकराया, पिता को दिया वचन निभाया

जासं, चौरी (भदोही) : क्षेत्र के लठिया गांव में चल रहे सात दिवसीय रामलीला में मंगलवार की रात नक्कटैया, सीताहरण का मंचन किया गया। देर रात तक डटे श्रद्धालु दर्शक जयकारा लगाते रहे।

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रामलीला मंचन में दशरथ मरण के बाद भरत ननिहाल से वापस आए और श्रीराम को मनाने के लिए नंगे पांव चित्रकूट धाम पहुंचे गए। भगवान राम को मनाने का भरत की सारी कोशिश नाकाम रही। अंतत: भाई भरत ने प्रभु के चरण पादुका को राजगद्दी पर रखने के लिए मांग किया तो गुरु वशिष्ठ की आज्ञानुसार उन्होंने अपनी चरण पादुका भरत को दे दी। भरत के अयोध्या लौटते ही उधर श्रीराम सीता व लक्ष्मण सहित दंडक वन में पहुंच गए। जहां रावण की बहन सूर्पणखा का लक्ष्मण ने नाक-कान काट दिया। फिर श्रीराम ने खर व दूषण का वध किया। जब यह घटना वह भाई रावण को बताई तो रावण माता मां सीता के हरण का संकल्प लेकर योजना में जुट गया। उसके अनुरोध पर मारीच सोने का मृग बनकर सीता की कुटिया के पास भटकने लगा। जिसे देख माता सीता प्रभु श्रीराम से सोने के मृग की छाल लाने को बोलीं। कुटिया में माता सीता को अकेला देख रावण साधु के वेश में माता सीता का हरण कर लिया। यहीं मंचन समाप्त हो जाता है। रामलीला मंचन के दौरान सभाशंकर त्रिपाठी, धीरज त्रिपाठी, धनीशंकर यादव, डब्लू चौबे, विजयी शुक्ला व अन्य थे।

सुरियावां प्रतिनिधि के अनुसार : हरीपुर अभिया में श्री आदर्श रामलीला समिति की तरफ से आयोजित सात दिवसीय रामलीला के दूसरे दिन मंगलवार को धुनष यज्ञ और सीता स्वयंकर का मंचन किया गया। मिथिला में महाराज जनक ने बेटी सीता के विवाह के लिए यज्ञ का आयोजन किया। मुनि विश्वामित्र के साथ वहां पहुंच श्रीराम ने शिवधनुष को तोड़ कर सीता का वरण किया। धनुष यज्ञ में एक से एक प्रतापी राजा शामिल हुए। रावण-वाणासुर जैसे प्रतापी राजा भी धनुष तोड़ने पहुंचे। लेकिन तोड़ने की बात तो दूर कोइ उसे तिल भर हिला भी न सका। भगवान शिव के धनुष टूटने की सूचना जैसी ही मुनि परशुराम तक पहुंची वह सीधे जनक दरबार पहुंच गए। वहां शिव धनुष को विखंडित देख उनका क्रोध उबल पड़ा। जिसके बाद मुनि और लक्ष्मण जी के बीच तीखा संवाद हुआ। इसके पूर्व जनक की पुष्प वाटिका में भगवान श्रीराम और मां सीता का मिलन हुआ। राम-बरात का मनमोहक दृश्य देख लोग गद्गद हो उठे। महिलाओं ने कन्यादान भी किया।


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