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खूब हो रही सियासत, मदद के लिए नहीं बढ़े हाथ

छत्तीसगढ़ में सीआइएसएफ में तैनात वकील ¨बद शहीद हुए थे या फिर सड़क हादसे में उनकी मौत हुई थी। यह तो जांच के बाद स्पष्ट हो पाएगा लेकिन समाज के हितैषी बने कथित पोषक उनके पार्थिव शरीर से भी मजाक कर दिया।

By JagranEdited By: Published: Wed, 21 Nov 2018 05:16 PM (IST)Updated: Wed, 21 Nov 2018 10:44 PM (IST)
खूब हो रही सियासत, मदद के लिए नहीं बढ़े हाथ
खूब हो रही सियासत, मदद के लिए नहीं बढ़े हाथ

जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर (भदोही): छत्तीसगढ़ आम्ड फोर्स में तैनात वकील ¨बद शहीद हुए थे या फिर सड़क हादसे में उनकी मौत हुई थी। यह तो जांच के बाद स्पष्ट हो पाएगा लेकिन समाज के हितैषी बने कथित पोषकों ने उनके पार्थिव शरीर से भी मजाक कर दिया। पहले तो चौबीस घंटे तक शव का अंतिम संस्कार करने नहीं दिया और जब परिवार के लोग राजी भी हुए तो ऐसे लोगों ने एक रुपये की भी आर्थिक सहायता नहीं दी। चुनावी विसात बिछाने वाले कथित समाज के पोषक की कार्यशैली पर लोग अब सवाल उठाने लगे हैं।

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जवान का शव पहुंचते ही समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के प्रयागराज के हंडिया विधायक से लगायत वाराणसी और मीरजापुर के कथित समाज के नुमाइंदे अपनापन दिखाने के लिए टूट पड़े थे। ¨बद समाज का पोषक कहे जाने वाले इन माननीयों और नमुमाइंदों द्वारा सियासत शुरू कर दी गई। शहीद का दर्जा आदि-आदि मांग को लेकर राजनीतिक गोटी सेट की गई। चौबीस घंटे तक पार्थिव शरीर ताबूत में रखा रह गया। यही नहीं कुछ दिन पहले आए एक झंडाबरदार ने तो जवान की याद में कैंडिल जुलूस भी निकाल दिया। यह भी नहीं है कि ¨बद समाज के इन नुमाइंदों के पास धन की कमी है लेकिन पीड़ित परिवार की एक अधेला भी आर्थिक मदद नहीं की। वकील का चार साल का मासूम और विधवा पत्नी के आंसू पोछने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ बल्कि पार्थिव शरीर से सियासी दांव चलने लगे। बताया जाता है कि विभाग से अंतिम संस्कार के लिए पचास हजार मिले थे। चार साल के मासूम और विधवा पत्नी की परिवरिश अब कैसे होगी। मृतक आश्रित से उसे नौकरी तो मिल सकती है लेकिन वह बेचारी छत्तीसगढ़ नौकरी करने जाएगी तो जाएगी कैसे? चार साल के मासूम के पढ़ाई लिखाई आदि कैसे होगी? इसकी ¨चता किसी समाज के नुमांइदों को नहीं है। जैसे-जैसे समय बीत रहा है वैसे-वैसे समाज के इन नुमाइंदों की कार्यशैली को लेकर तरह-तरह के सवाल उठने लगे हैं। जितने लोग उतनी बातें निकल रही हैं। अधिसंख्य लोग यही कहने लगे हैं कि विधवा पत्नी और मासूम बच्चे को सहायता करने नहीं बल्कि राजनीति चमकाने आए थे। आज भी अनाथ हुए परिवार के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं।


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