उम्मीदें लेकर आते, निराश होकर लौटते
स्थान भदोही के मेनरोड महादेव मंदिर। समय दोपहर 12 बजे। जनपद सहित पडोसी जनपदों के विभिन्न गांवों से काम की तलाश में आए 32 दिहाड़ी मजदूरों का जमावड़ा। सबके चेहरे पर निराशा के भाव। दोपहर होने को है लेकिन काम नहीं मिला। जैसे जैसे समय बीतता जाएगा वैसे वैसे उम्मीदें भी दम तोड़ देंगी। यह एक दिन की बात नहीं बल्कि रोज सुबह सौ से डेढ़ सौ लोग उम्मीदें लेकर लोग काम की तलाश में आते हैं। कुछ लोगों को काम मिलता है जबकि अधिकतर निराश होकर वापस लौट जाते हैं। यह सिलसिला पिछले दो माह से चल रहा है। बताते चलें कि कोरोना महामारी ने दिहाड़ी मजदूरों की रोजी रोटी छीन ली है। आसपास ग्रामीण अंचलों से आकर भदोही के मेनरोड महादेव मंदिर के पास जमावड़ा लगाने वाले अधिकतर मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है। भवन निर्माण सहित अन्य कामकाज प्रभावित होने के कारण दिहाड़ी मजदूरों की समस्या बढ़ गई है।
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जागरण संवाददाता, भदोही : भदोही के मेनरोड महादेव मंदिर पर दोपहर 12 बजे करीब 32 मजदूर बैठे थे। वे निराश थे। नजरें सड़क पर दिखी, वे उसे देख रहे थे जो उन्हें काम दे। परिवार की भूख मिटाने का इंतजाम कर दे। सुबह से वह बैठे रहे, लेकिन शाम तक बहुतों को निराशा हाथ लगी। यह किस्सा सिर्फ आज का नहीं बल्कि रोज का है। पिछले दो माह से वे इसी ढर्रे पर चल रहे हैं। कोरोना ने दिहाड़ी मजदूरों की रोजी रोटी छीन ली है। भवन निर्माण सहित अन्य कामकाज प्रभावित होने से समस्या बढ़ गई है। उनके सामने अब पेट भरने का संकट खड़ा हो गया है।
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पहले लोग घर से बुलाकर ले जाते थे लेकिन अब मजदूरों को अड्डे पर कोई पूछता नहीं। दो माह से बमुश्किल 18 दिन काम मिला। बाकी दिन निराशा हाथ आई।
28 - रामकुमार राय, मूंसीलाटपुर 20 किमी साइकिल चलाकर काम की तलाश में भदोही आते हैं। कई बार काम मिल जाता है लेकिन अधिकतर खाली हाथ ही घर लौटने को विवश हैं। कई दिनों से यही दर्द है।
29- भाईलाल बिद, नवहानीपुर, कपसेठी पहले कालीन बुनाई करते थे लेकिन लाकडाउन में कारखाना बंद हो गया। मजदूरी करने लगे, यहां भी काम का अभाव है। पिछले एक सप्ताह में दो दिन काम मिला।
30- महेंद्र गौतम, पिपरिस गांव में कोई काम नहीं है। शहर आए हैं, यहां भी काम नहीं। मेहनत से पीछे नहीं हटने वाले हैं लेकिन काम ही नहीं है। आखिर कब तक ऐसे चलेगा।
31- राजेंद्र गौतम, सरबतखानी चौरी जिला मुख्यालय साइकिल से रोज आते हैं। दो माह में 22 दिन काम मिला। परिवार के खर्च कैसे। इसलिए उम्मीद लेकर रोज आते हैं।
32- आसिफ शेख, ज्ञानपुर कालीन कंपनी का कामकाज प्रभावित हो गया है। परिवार का पेट पालने के लिए मजदूरी करना विवशता है लेकिन यहां भी हालत ठीक नहीं है।
33-राजकुमार गौतम, पूरेश्याम भदोही