अलाव के सहारे कटती जिदगी में एक कंबल की तलाश
स्थान जिला मुख्यालय से सटे चकटोडर गांव की मुसहर बस्ती समय सुबह करीब 10 बजे। सर्द हवाओं के बीच आशियाने के नाम पर फूस की टूटी-फूटी झोपड़ी के सामने लकड़ियों के चंद टुकड़ों से निकलते धुंए के सहारे गर्माहट लाने की कोशिश करती वृद्धा चंपा देवी और उनका कुनबा। हर आते-जाते पर इस आस के साथ टकटकी लगाए निहारतीं निगाहें की कोई तो आए और उनके आशियाने में राहत का उजाला कर दे।
जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर (भदोही) : स्थान : जिला मुख्यालय से सटे चकटोडर गांव की मुसहर बस्ती, समय : सुबह करीब 10 बजे। सर्द हवाओं के बीच आशियाने के नाम पर फूस की टूटी-फूटी झोपड़ी के सामने लकड़ियों के चंद टुकड़ों से निकलते धुंए के सहारे गर्माहट लाने की कोशिश करती वृद्धा चंपा देवी और उनका कुनबा। हर आते-जाते पर इस आस के साथ टकटकी लगाए निहारतीं निगाहें की कोई तो आए और उनके आशियाने में राहत का उजाला कर दे। मामला यह है कि ठंड व गलन के फैलते दामन से बचने के लिए एक अदद कंबल या फिर गर्म कपड़े के इंतजार में इस कुनबे के साथ बस्ती के अन्य परिवार लगे हैं। उधर प्रशासन पूरी तरह सुस्त पड़ा है तो समाज सेवा का दंभ भरने वाले लोग व संस्थाएं अनजान।
यह बस्ती तो एक बानगी मात्र है। ऐसी न जाने कितनी और बस्तियां व परिवार हैं जिन्हें इंतजार रहता है कि ठंड से बचाव को कंबल के इंतजार में हैं। जबकि वास्तविक धरातल पर स्थिति यह है कि ठंड व गलन बढ़ती जा रही है लेकिन गरीब व असहाय परिवारों को राहत देने की कोई पहल नहीं शुरू हो सकी है। वह भी ऐसे समय में जब शासन-प्रशासन स्तर से यह दावा हो रहा है कि ठंड से किसी को परेशान नहीं होने दिया जाएगा।
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- कालीन बुनाई व मेहनत मजदूरी करके परिवार चला रहा हूं। इस महंगाई के दौर में बीबी बच्चों का पेट भरना मुश्किल हो रहा है। कंबल व गर्म कपड़ों का इंतजाम कैसे हो समझ में नहीं आ रहा है। कंबल मिल जाता तो राहत मिलती।
चित्र.31-- मक्खन
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- ठंड से बचने के लिए अलाव का सहारा ले रही हूं। न तो कंबल है न ही अन्य गर्म कपड़े। किसी तरह से जिदगी कट रही है। न तो कंबल मिल रहा है न ही कोई अन्य सहायता। कंबल व बच्चों को कपड़ा मिल जाता तो राहत होती।
चित्र.32-- रीनू
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- टूटा छप्पर ही घर हउवई साहब, मेहनत मजदूरी कइके किसी तरह पेट भरत हई। कंबल और स्वेटर कहां से लाई। अलाव ही उनका ठंडी से बचई का सहारा हउवै। बचवन के स्वेटर अउर कंबल मिल जातई त ठंडी कट जात।
चित्र.33-- शीला
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- साहब, कहां कंबल बंटत बा अउर कहां स्वेटर। ई सब त कबहूं पतई न चलत। उनकर सहारा त इहे अलाव बाटई। न त कउनव अधिकारी आवत हएन न कोई अउर। अगर कंबल मिल जात त कुछ सहारा मिल जात।
चित्र.34-- चंपा देवी