रसायनिक उर्वरक का अंधाधुन प्रयोग, बंजर होती धरती
दिनों - दिन बढ़ती आबादी के साथ सुविधा व संसाधन की चाह में तैयार होते कंकरीट के जंगल यानी घर मकान सड़क व अन्य संसाधन के चलते सिमटते कृषि योग्य भूमि में अधिर उत्पादन हासिल करने की लालसा
जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर (भदोही) : दिनोंदिन बढ़ती आबादी के साथ सुविधा व संसाधन की चाह में तैयार होते कंक्रीट के जंगल यानी घर, मकान, सड़क व अन्य संसाधन के चलते सिमटते कृषि योग्य भूमि में उत्पादन हासिल करने की लालसा, रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुन प्रयोग से खेतों की उर्वराशक्ति क्षीण होती जा रही है। आलम यह है कि उपजाऊ मिट्टी ऊसर में तब्दील होने की ओर अग्रसर है। बावजूद इसके मिट्टी के स्वास्थ्य परीक्षण के बाद रिपोर्ट व उचित सलाह नहीं मिलने से बेहतर उत्पादन के चक्कर में किसान डाई व यूरिया से खेतों को पाट दे रहे हैं। इससे उपजाऊ जमीन के बंजर होने व उसर में तब्दील होने की आशंका बढ़ गई है।
पालतू पशुओं की संख्या अनवरत घटती जा रही है। पर्याप्त गोबर नहीं मिलने से किसान जैविक व कंपोस्ट खाद जरूरत के अनुरूप तैयार नहीं कर पा रहे हैं। कहने को तो कृषि विभाग किसानों के खेतों की उर्वरा शक्ति के परीक्षण के लिए हर वर्ष नमूने लेता है। देखा जाए तो विभागीय कार्रवाई मिट्टी के नमूने लेने से आगे कम ही बढ़ पाती है। मृदा परीक्षण के बाद किसानों को रासायनिक उर्वरकों डाई, यूरिया व पोटाश के उपयोग के अनुपात के विषय में कभी भी सलाह नहीं दी जाती ऐसे में किसान उत्पादन बढ़ाने के लिए मनमाने ढंग से रासायनिक खाद का उपयोग कर रहे हैं जो खेतों के स्वास्थ्य के लिए घातक साबित हो रहा है। घट रही जीवांश कार्बन की मात्रा
रसायनिक उर्वरकों के अंधाधुन व असंतुलित प्रयोग के चलते उपजाऊ मिट्टी के लिए जरूरी जीवांश कार्बन की मात्रा घट रही है। मृदा जांच के बाद आ रही रिपोर्ट में अधिकांश मिट्टी नमूनों में उपजाऊ मिट्टी के लिए जरूरी जीवांश कार्बन की मात्रा 0.8 होनी चाहिए जो कि मौजूदा समय में 0.2 से 0.3 तक ही आ रही है। इसी तरह मिट्टी में मुख्य पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश का अनुपात 4.2.1 का होना चाहिए जो 8.3.1 है जो आधा से भी कम है।