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लगा है रोग तो धान की फसल में न छिड़कें यूरिया

धान की फसल में अगर रोग का प्रभाव है तो यूरिया का छिड़काव कत्तई न करें। यूरिया से पूरे खेत में रोग फैल जाता है। रोग से फसल को मुक्ति दिलाने के लिए सबसे पहले रोगरोधक दवाओं का छिड़काव करें। रोग से मुक्ति मिलने के बाद ही आवश्यकता के अनुसार यूरिया का छिड़काव करें। दैनिक जागरण की ओर से रविवार को आयोजित प्रश्न प्रहर कार्यक्रम में कार्यालय में उपस्थित कृषि विज्ञान केंद्र बेजवां के कृषि वैज्ञानिक डा. आरपी चौधरी ने टेलीफोनिक माध्यम से सवालों के जवाब में यह जानकारी दी।

By JagranEdited By: Published: Sun, 08 Sep 2019 05:01 PM (IST)Updated: Sun, 08 Sep 2019 05:01 PM (IST)
लगा है रोग तो धान की फसल में न छिड़कें यूरिया
लगा है रोग तो धान की फसल में न छिड़कें यूरिया

जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर (भदोही) : धान की फसल में अगर रोग का प्रभाव है तो यूरिया का छिड़काव कत्तई न करें। यूरिया से पूरे खेत में रोग फैल जाता है। रोग से फसल को मुक्ति दिलाने के लिए सबसे पहले रोगरोधक दवाओं का छिड़काव करें। रोग से मुक्ति मिलने के बाद ही आवश्यकता के अनुसार यूरिया का छिड़काव करें। दैनिक जागरण की ओर से रविवार को आयोजित प्रश्न पहर कार्यक्रम में कार्यालय में उपस्थित कृषि विज्ञान केंद्र बेजवां के कृषि वैज्ञानिक डा. आरपी चौधरी ने टेलीफोनिक माध्यम से सवालों के जवाब में यह जानकारी दी। किसानों के सवाल पर उन्होंने बड़े ही संजीदगी से धान, अरहर व बाजरा आदि के फसल में लगने वाले वाले रोगों से मुक्ति के लिए दवाओं के बारे में जानकारी देकर छिड़काव की विधि के बारे में भी बताया।

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सवाल : धान में झुलसा रोग ज्यादा लग गया है। कीड़ी भी पत्तियों को नुकसान पहुंचा रही हैं। बचाव के लिए उपचार क्या है।

जवाब : सबसे पहले रोगों का लक्षण की जानकार प्राप्त कर लें। पत्तियां निकलने के स्थान पर यदि काला धब्बा है और जगह-जगह है तो वह खैरा रोग है। अगर पूरे खेत में फसल में पत्तियां किनारे से पीली हो जा रही हैं। तो झुलसा रोग कहलाता है। जिससे पत्तियां लाल या कत्था रंग होकर सूखकर कागज जैसी हो जाती हैं। इस रोगों से बचाव के लिए कार्बेंडाजिम दवा प्रति लीटर पानी में 2.5 ग्राम की दर से घोल बनाकर सप्ताह भर के अंतराल पर दो-तीन बार छिड़काव कर दें। छिड़काव के लिए एक बीघा खेत में 125 लीटर पानी की जरूरत होती है। इसके अलावा हेक्साकोना जोल का भी छिड़काव कर सकते हैं। धान की फसल में रोग के दौरान यूरिया का प्रयोग कत्तई न करें। क्योंकि यूरिया से रोग पूरे खेत में फैल जाता है।

सवाल : आम्रपाली प्रजाति का आम का पेड़ है। तना सूख रहा है। साथ ही विकास भी रुक गया है।

जवाब : आम का पौधा उपरवार क्षेत्र में होने की दशा में ज्यादा सुरक्षित होता है। आम के पौधे में डाइबैग बीमारी की शिकायत होती है। जिसका लक्षण है कि टहनियां उपर से सूखती हुई नीचे की तरफ आती हैं। जहां तक टहनी सूखी है उससे थोड़ा नीचे हरे वाले भाग को काटकर कापर आक्सीक्लोराइड का लेप लगा दें। साथ ही पूरे पौधे पर उसका घोल बनाकर छिड़काव भी कर दें। छिड़काव के लिए 3 ग्राम दवा एक लीटर पानी की दर से घोल तैयार करें।

सवाल : धान की फसल को रोगों से सुरक्षा के लिए सतर्कता के तौर पर क्या उपाय है।

जवाब : कंडुआ रोग फंगस द्वारा होता है। मृदा जनित व वायु के माध्यम से इस रोग की वृद्धि होती है। इसके लिए कार्बेंडाजिम 2.5 ग्राम एक लीटर पानी के अनुपात में घोल बनाकर धान में बाली लगने के समय ही छिड़काव करें। एक बीघा खेत में 125 लीटर पानी की खपत होती है।

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किसने किया सवाल : जयप्रकाश पांडेय, कूड़ी कला, अमरचंद बिद, मुंगरहा, विजयलाल यादव, मनीपुर इटहरा, सुनील मौर्य, घाटमपुर, फतेह बहादुर सिंह, ऊंज, हरिश्चंद्र मिश्र, अरुणेंद्र चौबे, कुरमैचा।


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