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घटी डिमांड तो अबकी 20 रुपये सस्ता हुआ ढैंचा

हरी खाद के जरिए अपनी मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए ढैंचा की बोआई करने की तैयारी में लगे किसानों को अबकी बार बीज सस्ता मिलेगा। शासन ने मूल्य तो घटाकर तय किया है लेकिन जिले के लक्ष्य को भी कम कर दिया है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 19 Apr 2019 09:37 PM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2019 11:46 PM (IST)
घटी डिमांड तो अबकी 20 रुपये सस्ता हुआ ढैंचा

जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर (भदोही) : घाटमपुर औराई के किसान किशोर चंद्र बरनवाल ने पिछले वर्ष तीन बीघा खेत में ढैंचा बोया था। वे और खेती कर सकते थे, लेकिन बीज महंगा होने के चलते कम खेती की। दो बीघा जोताई कराई थी खाद के लिए, एक बीघा बीज के लिये उन्होंने छोड़ दिया था, अबकी उनका बीज तैयार हो चुका है। किशोर चंद्र जैसे किसानों के लिए इस बार अच्छी खबर है। इस बार उन्हें 20 रुपये सस्ता बीज मिलेगा। हरी खाद से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने को ढैंचा बोते हैं। पिछले वर्ष भदोही जिले में 50 क्िवटल बीज बच गया। वह अभी तक गोदाम में पड़ा है। सरेंडर भी नहीं किया गया है। नाराज शासन ने अबकी लक्ष्य ही घटा दिया है। 200 क्िवटल बीज ही वितरित होगा। हालांकि आचार संहिता के चलते सब्सिडी की राशि तय नहीं हो सकी है। 52 रुपये किलो तय है रेट : कृषि विभाग के अंतर्गत आने वाले ढैंचा बीज की कीमत इस बार 52 रुपये किलो तय की गई है। इसमें मिलने वाली 50 फीसद सब्सिडी के बाद कीमत 26 रुपये किलो हो जाएगी। जबकि पिछले वर्ष 72 रूपये किलो मूल्य निर्धारित था। 50 फीसद सब्सिडी कटौती के पश्चात 36 रुपये में किसानों को बीज हासिल हुआ था। वैसे आचार संहिता के चलते अभी सब्सिडी की राशि का निर्धारण नहीं हो सका है। कैसे तैयार होगी हरी खाद : हरी खाद के लिए ढैंचा की बोआई मई में शुरू होगी। फसल की बोआई के 40 से 60 दिन के अंदर गहरी जोताई करा फसल को मिट्टी में मिला देना चाहिए। हरी खाद को पलटते समय खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है। फसल में फूल आने से पूर्व हरी खाद के लिए सर्वोत्तम होती है। प्रति बीघा ढैंचा की बोआई के लिए 20 किलो बीज पर्याप्त होता है। ये हैं लाभ

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-भूमि में जीवांश पदार्थ व पोषक तत्वों की मात्रा में वृद्धि होती है। पोषक तत्वों का निछालन कम से कम होता है। साथ ही पोषण तत्वों के संग्रहण की क्षमता बढ़ जाती है।

-भूमि की जल धारण, संचयन एवं वायु संचार क्षमता में वृद्धि होती है। भूमि में कार्य करने वाले लाभदायक जीवाणुओं की क्रियाशीलता में भी बढ़ोत्तरी होती है। फसलोत्पादन में वृद्धि के साथ गुणवत्ता भी अच्छी होती है।

-खर पतवार नियंत्रण में आसानी होती है। पौधों में रोग व कीटों के लगने की संभावना कम हो जाती है। नत्रजन की मात्रा बढ़ती है। हरी खाद क्षारीय भूमि को सुधारकर खेती के योग्य बनाती है। ''पिछले वर्ष पांच सौ क्िवटल बीज का लक्ष्य तय था। इस बार केवल दो सौ कुंतल बीज का लक्ष्य जिले को मिला है। इसे बढ़ाने के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा जाएगा। जिससे अधिक से अधिक किसानों को ढैंचा बीज उपलब्ध हो सके।''

-अरविद कुमार सिंह, उप कृषि निदेशक।


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