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किसानों की मेनहत को चौपट कर रहे बेसहारा पशु

मुख्यालय से सटा हुआ जोरई गांव। किसानों के 200 परिवार हैं यहां। सबकी जिदगी खेती पर निर्भर। अगर यहां के लघु एवं सीमांत किसानों के पास अन्न न पैदा हो तो स्थिति भुखमरी की बन जाती है। यहां के लोगों ने गेहूं और अरहर की फसल ज्यादा संख्या में बोई है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 09 Dec 2019 08:33 PM (IST)Updated: Tue, 10 Dec 2019 06:03 AM (IST)
किसानों की मेनहत को चौपट कर रहे बेसहारा पशु

जागरण संवादाता, ज्ञानपुर (भदोही) : मुख्यालय से सटा हुआ जोरई गांव। किसानों के 200 परिवार हैं यहां। सबकी जिदगी खेती पर निर्भर। अगर यहां के लघु एवं सीमांत किसानों के पास अन्न न पैदा हो तो स्थिति भुखमरी की बन जाती है। यहां के लोगों ने गेहूं और अरहर की फसल ज्यादा संख्या में बोई है। सौ एकड़ खेती हुई है यहां, लेकिन किसानों को दर्द एक बेसहारा मवेशी। उनकी फसल को मवेशी चबा गये और उनकी मेहनत के बाद निकला पसीना पी गये।

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सब्जी के अलावा गेहूं, अरहर, चना, मटर, आलू, बैगन और सरसों की खेती यहां मवेशी साफ कर चुके हैं। 80 प्रतिशत खेती पशुओं का निवाला बन चुकी है। इस बार किसान माथा पीट रहे हैं। आक्रोश भी जता रहे कि क्यों मवेशियों पर लगाम नहीं लगाई जा रही। उनकी जिदगी तबाह हो चुकी है। बकौल काश्तकार, कमला शंकर, दीनानाथ यादव और फूलचंद के सामने तो परिवार चलाने का खतरा मंडरा रहा है, उन्हें कुछ नहीं मिलेगा इस बार। यह गांव तो सिर्फ नजीर मात्र है, जिले के 90 प्रतिशत गांवों का अमूमन यही दर्द है। जो बयां भी नहीं कर पा रहे हैं।

प्रदेश सरकार बेसहारा पशुओं को लेकर बेहद सख्त हैं, लेकिन धरातल पर अधिकारी उनकी सख्ती की हवा निकाल रहे हैं। प्रदेश सरकार चेता रही है कि बेसहारा मवेशी छोड़ने वालों पर कार्रवाई होगी, लेकिन कुछ नहीं हो रहा। जिले में स्थायी और अस्थायी गोवंश आश्रय स्थल भी हैं, लेकिन वहां तक पशुओं को पहुंचाने में लापरवाही बरती जा रही है।

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बोले किसान

जोरईं के किसानों का दर्द

- खेत में सरसों की बुआई समय से की थी। बेहतर पैदावार की आस थी, लेकिन काटने से पहले मवेशी चर गये। लाख उपाय के बाद भी फसल नष्ट हो गई। चित्र 34 -कमला शंकर यादव

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- जोताई व सिचाई कर खेत में गेहूं की बोआई 20 दिन पहले की थी। फसल भी अच्छी थी लेकिन पशु पूरा खेत साफ कर गये। खेती की पूंजी डूब गई। चित्र 35 - देवशरण गौतम

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- बेसहारा मवेशी आश्रय स्थल का निर्माण हुआ है। मवेशी लेने के लिए पैसे मांगें जा रहे हैं। समस्या का समाधान नहीं हो पाया।

चित्र 36 - पंधारी यादव।

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- महंगाई में इतनी पूंजी लगाकर फसलों की बुआई की। अरहर की फसल खेत में लहलहा रही थी। फसल तैयार होने के बाद दाल बाजार से नहीं खरीदना पड़ेगा। मवेशियों ने पूरा खेत साफ कर दिया। चित्र. 37. अशोक कुमार।


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