शासन से मिले सौगात तो बने बात
देश के सबसे बड़े कुटीर उद्योग का गौरव प्राप्त कालीन नगरी में तीन सौ से अधिक कुटीर उद्योग इन दिनों गर्दिश के दौर से गुजर रहा है। आलम यह है कि बैंकों से कर्ज लेकर कुटीर उद्योग स्थापित तो किए गए लेकिन सरकार की ओर से कोई सुविधा न मिलने पर ताला लटक चुका है। स्थानीय के साथ ही साथ राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर बाजार न मिलने से उद्यमी भी मुंह मोड़ने लगे हैं।
जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर (भदोही) : देश के सबसे बड़े कुटीर उद्योग का गौरव प्राप्त कालीन नगरी में तीन सौ से अधिक कुटीर उद्योग इन दिनों गर्दिश के दौर से गुजर रहा है। आलम यह है कि बैंकों से कर्ज लेकर कुटीर उद्योग स्थापित तो किए गए लेकिन सरकार की ओर से कोई सुविधा न मिलने पर ताला लटक चुका है। स्थानीय के साथ ही साथ राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर बाजार न मिलने से उद्यमी भी मुंह मोड़ने लगे हैं। माना जा रहा है कि मंदी के इस दौर में इन कुटीर उद्योगों को पुनर्जीवित करने के लिए शासन से सौगात मिले तो न सिर्फ बेरोजगारी दूर होगी बल्कि मंदी से भी निबटा जा सकेगा।
जनपद सृजन के बाद कुटीर और लघु उद्योग स्थापित होने के आंकड़ों को देख ऐसा लग रहा था कि बेरोजगारी पूरी तरह जड़ से समाप्त हो जाएगी। उद्योगों को स्थापित कराने के लिए सरकारी अनुदान भी संबंधित विभागों से धड़ल्ले से दिए जाने लगे। दो दशक में इसकी संख्या पांच सौ से अधिक हो गई थी। जानकारों का कहना है कि किसी भी उद्योग को स्थापित होने के बाद व्यापार करने के लिए बाजार और संसाधनों की जरूरत होती है। जिले में डाइंग प्लांट, इंदिरा मिल, कंबल कारखाना सहित इस तरह के उद्योग तो स्थापित हुए लेकिन संसाधनों से जूझते रहे। उन्हें न तो समय से बिजली मिल रही है और न सरकारी अनुदान। स्थानीय के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर बाजार भी नहीं मिला। परिणामस्वरूप धीरे-धीरे तीन सौ से अधिक कुटीर और लघु उद्योगों में ताला लटक चुका है।
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जिले में फेल हो गया डेयरी उद्योग
- जनपद में दुग्ध उत्पादन के लिए कामधेनु और मिनी कामधेनु उद्योग स्थापित कराए गए थे। इस उद्योग में सरकार की ओर से भी अनुदान दिया जा रहा था। शुरूआती दौर में तो एक करोड़ और पचास लाख की लागत से 14 से अधिक डेयरी फार्म स्थापित तो कराए गए लेकिन वह भी समय के पहले ही बंद हो गए। एक-दो को छोड़ दिया जाए तो अधिसंख्य डेयरी उद्योगों में ताला लटक जा चुका। अधिकारी भी जानते हुए कुछ नहीं कर पा रहे हैं।