लॉकडाउन में मजबूत हुई पारिवारिक बंधन की गाठ
वैश्विक विपदा कोरोना से तबाही मची तो भारत की विलक्षण पारिवारिक संस्कृत फिर उभर कर सामने आ गई। बड़े शहरों में रहकर कमाने-खाने की ख्वाहिश से ब
बस्ती : वैश्विक विपदा कोरोना से तबाही मची तो भारत की विलक्षण पारिवारिक संस्कृत फिर उभर कर सामने आ गई। बड़े शहरों में रहकर कमाने-खाने की ख्वाहिश से बहुतायत का मन भर गया। पूरा का पूरा कुनबा अपने गांव आ गया। घर का दलान, देहरी, आंगन सब परिवार के नए पुराने सदस्यों से गुलजार हो गया है। बच्चों की चहलकदमी, बड़ों के अनुभव, गांव के किस्से-कहानी से हर कोई दो-चार हो रहा है। एक-दूसरे के बीच स्नेह की डोर मजबूत हुई है।
ऐसा ही एक परिवार है कुदरहा ब्लाक के माधोपुर गांव में। विजय बहादुर पाल के घर दो दर्जन सदस्यों का कुनबा लॉकडाउन में लंबे समय बाद गांव में एकत्र हुआ है। परिवार के 18 सदस्य महाराष्ट्र में रहते हैं। वहां दो भाई और बेटे एक साथ टेक्सटाईल डिजाइनर के रुप में लंबे समय से कार्य कर रहे हैं। दो अन्य भाइयों का परिवार बस्ती में निवास करता है। सबसे छोटे भाई शिक्षक कृष्ण बहादुर पाल ही अकेले घर पर रहते हैं। इनकी पत्नी पूनम पाल बस्ती में रहकर शिक्षक की नौकरी करती है। महाराष्ट्र से दूसरे नंबर के भाई फतेहबहादुर पाल, पत्नी शांती, बेटा विकास, विशेष, बेटी टैनी, डिपल के अलावा नाती रनवीर, अर्जुन, युवराज, सोनी, जितेंद्र, अनुराग, माता पियारी देवी अपनी गाड़ी से पैतृक गांव आ गए। बस्ती से शिक्षक पूनम पाल, बेटी तरु, अनन्या के साथ गांव चली आई। तीसरे नंबर के भाई डा. अमर बहादुर पाल, पत्नी डा. अनीता पाल, बेटा अमन भी आ पहुंचे। इस तरह इनका पूरा कुनबा पैतृक घर पर एकत्र हो गया है। डेढ़ माह से यह परिवार अपनों के साथ खुशियों में जी रहा है। चाय की चुस्कियों के बीच सुबह हो रही तो दोपहर में साथ भोजन का आनंद सभी उठा रहे हैं। महिलाएं घर के अंदर एक से एक पकवान मिलजुलकर बना रही है। पारिवारिक बंधन की गांठ यहां अब मजबूत हो चली है।