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आतिशबाजी के शोर में हैरान बेजुबान

पटाखा कोई खेल नहीं है। जरा, इसके दुष्प्रभाव पर भी तो नजर डालिए।

By JagranEdited By: Published: Sun, 04 Nov 2018 10:46 PM (IST)Updated: Sun, 04 Nov 2018 10:46 PM (IST)
आतिशबाजी के शोर में हैरान बेजुबान
आतिशबाजी के शोर में हैरान बेजुबान

बस्ती : पटाखा कोई खेल नहीं है। जरा, इसके दुष्प्रभाव पर भी तो नजर डालिए। घोर आतिशबाजी के शोर में बेजुबान तक हैरान हो जाते हैं। वायुमंडल ही इनकी ¨जदगी का सहारा है। लेकिन कार्बनिक रसायन से निर्मित पटाखे जब हम फोड़ते हैं तो वायुमंडल में प्रदूषण तेजी से फैलता है। हम तो कुछ हद तक बचाव कर लेते हैं, लेकिन बेजुबान कहां जाएं। यह अपना दर्द किससे कहें। इनका आशियाना कोई और नहीं खुले आसमान के नीचे है। जहां दीपावली की धूम में आतिशबाजी का अतिशय कर देते हैं। तेज ध्वनि, कार्बन के कण, बारूद सब वायुमंडल में ही पहुंचते हैं। प¨रंदों का ठौर बदल जाता है। पटाखों की गूंज में वह उड़ते ही रहते हैं। शुद्ध आबोहवा और शांति की तलाश में दूर तक जाते हैं। रात्रि का समय होता है। कुछ पक्षियों को उड़ने में कठिनाई होती है। ऐसे प¨रदे दीवारों की आड़ में छिपे रहते हैं। पटाखे का सिलसिलेवार धमाका होने पर पक्षी सहम जाते हैं। घरों के झरोखे में सहमे रहते हैं। कुछ हैरानी में फुदककर खुले में आते हैं। इस दौरान तेज आवाज और प्रदूषण से उन्हें जान तक गंवानी पड़ती है। यही हाल मवेशियों का है। एक निश्चित जगह पर बंधे होने की वजह से आतिशबाजी उनमें भी हलचल पैदा करती है। धमाका होने के दौरान बेचैन जानवर अपनी जगह से भागने की कोशिश करते हैं। उन्हें एक निश्चित पैरामीटर के बाद की ध्वनि हैरान कर देती है। फिर वह अपने को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं। गौर करेंगे तो हमें इसकी स्पष्ट अनुभूति होगी। जब हम गौशाला या जानवर के समीप पटाखा जलाते हैं। तो यह दूसरे स्थान की ओर भागने लगते हैं। चमकदार रोशनी और तेज आवाज इनमें अजीब सी हलचल पैदा कर देती है। इस बार दीपावली में आतिशबाजी के समय हम बेजुबानों का ख्याल रखें। पर्यावरण संतुलन में इनकी भी बड़ी भूमिका होती है। इन्हें हानि पहुंचने से मनुष्य को भी नुकसान है।

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पटाखा छोड़ते समय उसमें तीव्र ध्वनि निकलती है। यदि दीवार से सटकर मवेशी या पक्षी नि¨श्चत मुद्रा में बैठे हैं तो उनके कानों में अचानक पहुंचने वाली यह गूंज उन्हें कुछ देर के लिए विचलित कर देती है। ऐसे समझिए कि बेजुबानों को धमाका और ¨चगारी की बौछार से किसी अनहोनी की आशंका होने लगती है। इसीलिए सुरक्षित ठिकाने की तलाश में भागने लगते हैं। दूसरी अहम बात यह कि वातावरण में प्रदूषण फैल जाता है। इससे सर्वाधिक नुकसान पक्षियों को होता है। उनकी मौत तक हो जाती है। ऐसी जगहों पर आतिशबाजी कतई न करें जहां पशु-पक्षियों का आशियाना हो।

डा. जय ¨सह यादव, उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी, बस्ती सदर ।


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