संघर्ष ने दिया लड़ाकू दीदी का नाम
2002 से महिला हितों की लड़ रहीं है लड़ाई
बस्ती : महिलाओं के हक की आवाज हैं रतनबाला श्रीवास्तव। न कोई नौकरी न कोई पार्टी लेकिन महिलाओं के सवाल पर लड़ने भिड़ने को हमेशा तैयार। बात उन दिनों की है जब मामूली मानदेय पर काम करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को परेशान किया जाता था।
इनकी पीड़ा नहीं देखी गई तो घर की दहलीज लांघ कर आंदोलन की बागडोर संभाल ली। उस समय आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की सुनने वाला कोई नहीं था। संगठन न होने के चलते महिलाएं बिखरी हुईं थी। वर्ष 2002 में रतनबाला ने सबको एक मंच पर लाने के लिए संगठन खड़ा कर दिया। आंगनबाड़ी में न होते हुए भी यह पहली ऐसी महिला हैं जिनको संगठन का अध्यक्ष चुना गया। तब से निर्ववाद रूप से वह महिला आंगनबाड़ी कर्मचारी संघ की जिलाध्यक्ष हैं। अब उनके बगैर महिलाओं के आंदोलन को मुकाम नहीं मिल पाता। जिले से लेकर प्रदेश स्तर तक के संगठन में इनकी अहम भूमिका है।
महिलाओं की दीदी है रतनबाला
बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग की वह कर्मचारी नहीं हैं पर रतनबाला को महिला कार्यकर्ता दीदी कहकर ही पुकारती हैं। पति केके श्रीवास्तव का उनके संघर्ष में पूरा योगदान रहता है। सामाजिक सरोकारों से भी वह जुड़ी रहती हैं। 300 से अधिक धरना-प्रदर्शन का नेतृत्व कर चुकी हैं। विधानसभा घेराव के दौरान लाठी भी खाई। दो मुकदमें भी दर्ज हुए लेकिन हार नहीं मानीं।
----------
आंदोलनों में मिली सफलता
रतनबाला का कहना है कि वह महिलाओं के हक के लिए सदैव संघर्ष करती रहेंगी। संघर्ष का ही नतीजा है कि आंगनबाड़ी कर्मियों को सुपरवाइजर पद के समायोजन में 50 फीसद का लाभ मिला। केंद्र और राज्य सरकार ने मानदेय में वृद्धि की। इनको काम के हिसाब से वेतन व अधिकार दिलाना उनका मकसद है।