लाखों खर्च फिर भी नहीं सज रही किसान मंडी
कहीं अतिक्रमणकारी हाबी तो कहीं पशुओं का बसेरा
बस्ती: सरकार ने किसानों को नजदीक में ही बाजार उपलब्ध कराने व उनकी उपज का वाजिब मूल्य दिलाने के लिए गांवों में ही लाखों की लागत से एग्रीकल्चर मार्केटिग हब (एएमएच) का निर्माण कराया। उद्देश्य यह की किसानों को उनके खेतों की उपज व सब्जियां बेचने के लिए दूर न जाना पड़े और मुनाफे में इजाफा हो। हालात इसके उलट हैं। क्षेत्र के सभी मार्केटिग हब निष्प्रयोज्य पड़े हैं। कुछ में बेसहारा पशुओं का ठिकाना है तो कहीं लोगों ने अतिक्रमण कर व्यक्तिगत उपयोग शुरू कर दिया है। 3 वर्ष पूर्व बनकर तैयार इन मंडियों में किसानों के नाम दुकानें आवंटित तो हो गईं पर योजना पर अमल में नहीं हुआ। जिले के परशुरामपुर विकास क्षेत्र के खम्हरिया,ककरा, लक्ष्मणपुर आदि गांवों में न्याय पंचायत स्तरीय किसान एग्रीकल्चर मार्केटिग हब बनाए गए हैं। जिनमें टिन शेड से आच्छादित चबूतरे के साथ ही कमरे बनाए गए हैं। जिनकी लागत करीब 25 लाख रुपये है। सभी मंडी स्थलों का हस्तांतरण 2015-16 में किया गया था। फिर भी किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है।
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किसानों को यह होता लाभ
गांव में ही बाजार होने से ट्रांसपोर्ट खर्चों में कमी आती। बिचौलियों व आढ़तियों से छुटकारा मिलता। उत्पाद का उचित मूल्य मिलता। सामूहिक मार्केटिग पर जोर, खाद्यानों का समुचित भंडारण, कृषि बा•ार में सुधार,फल,सब्जी व अनाज उत्पादन करने वाले छोटे किसानों को सीधा लाभ मिलेगा।
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प्रदेश में 2105 जगह चिह्नित
यूपी में ऐसे ग्रामीण मंडी स्थलों लिए 2105 जगह चिह्नित की गईं। इसके लिए 13वें वित्त आयोग से 354 करोड़ रुपये मिले थे। प्रदेश में अब तक सहकारिता, पंचायती राज सहित दूसरे विभागों की जमीनों पर 1643 एग्रो मार्केटिग हब बने हैं।