घरों में किया इमाम हुसैन का जिक्र, मातम मनाया
सार्वजनिक जगहों पर कोई आयोजन नहीं हुआ। छोटे-छोटे ताजिये बचे ले जा रहे थे।
जासं. बस्ती : कोरोना संक्रमण काल को देखते हुए मुहर्रम का कार्यक्रम सार्वजनिक स्थानों पर नहीं हुआ। लोगों ने घरों में इमाम हुसैन व कर्बला के शहीदों का जिक्र किया और आंसू बहाए। कोविड-19 प्रोटोकाल का पालन करते हुए इमामबाड़ों में मजलिसों का आयोजन किया गया।
पैगम्बरे इस्लाम के नवासे इमाम हुसैन की शहादत की याद में मुहर्रम का त्योहार मनाया जाता है। मुहर्रम में ताजिए, अलम आदि का जुलूस निकाला जाता है। यह पहला अवसर है जब मुहर्रम के अवसर पर पूरे जिले में कोई सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं हो रहा है। बच्चे छोटे-छोटे ताजिया ले जाते दिखे। बोले यह घरों में रखेंगे।
इमामबाड़ा शाबान मंजिल, लाडली मंजिल सहित अन्य इमामबाड़ों में पहुंचकर लोगों ने चादरपोशी की तथा फातिहाख्वानी की। मजलिसों का आयोजन कर इमाम हुसैन की शहादत को याद किया गया। पुरानी बस्ती क्षेत्र में भी कुछ इमाम चौक पर परचम नस्ब कर इमाम को नजराना ए अकीदत पेश किया गया। लोगों ने नजरो नियाज भी कराया। किसी भी तरह की भीड़ न जमा होने पाए इस पर चौक के प्रबंधकों की विशेष नजर रही। शहीदों की याद मनाने के लिए कुछ लोगों ने घरों में नौहे व सोज सलाम सुनकर अपने गम का इजहार किया।
मौलाना अब्दुल हलीम ने बताया कि कोविड-19 प्रोटोकॉल का ख्याल रखते हुए रहमतगंज स्थित उनके घर पर पहली मुहर्रम से महफिल का आयोजन किया गया। मौलाना इरशाद निजामी ने इमाम हुसैन व उनके साथियों की शहादत पर रोशनी डाली। मौलाना हलीम ने कहा कि इस्लाम हमारे पैगम्बर लाए तो इस्लाम की हिफाजत का काम उनके नवासे इमाम हुसैन ने किया। उन्होंने लोगों से अपील किया कि कोरोना को देखते हुए इस साल मुहर्रम की दसवी को न तो जुलूस निकाले और न ही सार्वजनिक जगह पर भीड़-भाड़ लगाएं। घरों में रहकर जिक्रे कर्बला करें।