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पौधों की नर्सरी से सुधार रहीं पर्यावरण

जिले के कप्तानगंज क्षेत्र की बिस्नोहरपुर निवासी नीलम ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में छोटी सी पहल से शुरुआत की है। घर पर पौधों की नर्सरी तैयार कर रही हैं। इसे व्यवसाय में शामिल करने के साथ लोगों को कुछ पौधे अलग से निश्शुल्क देती हैं। उनका कहना है कि इससे लोग प्रेरित होंगे

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 11:45 PM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2018 11:45 PM (IST)
पौधों की नर्सरी से सुधार रहीं पर्यावरण

बस्ती: जिले के कप्तानगंज क्षेत्र की बिस्नोहरपुर निवासी नीलम ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में छोटी सी पहल से शुरुआत की है। घर पर पौधों की नर्सरी तैयार कर रही हैं। इसे व्यवसाय में शामिल करने के साथ लोगों को कुछ पौधे अलग से निश्शुल्क देती हैं। उनका कहना है कि इससे लोग प्रेरित होंगे। उनके इस प्रयास को गांव की अन्य महिलाओं ने भी अपनाना शुरू कर दिया है। उनकी नर्सरी में विभिन्न प्रकार के पौधे लहलहाते देखे जा सकते हैं। उनके पति दिल्ली में फ्लावर डेकोरेशन का कार्य करते थे। उनके कार्यों से ही उनके मन में प्रेरणा आई। उनकी नर्सरी में रैविश पाम व टेका पाम के अलावा तेजपत्ता, दालचीनी, चंदन, हर्रै, नाशपाती,चीकू, मौसमी, सेब, चेरी सहित विभिन्न तरह के सजावटी फूल व पौधे भी उपलब्ध हैं।

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राष्ट्रीय राजमार्ग पर गौरा गांव की सीमा में नर्सरी चला रहीं नीलम का शौक अपने आप में अनूठा है। पति व बच्चों के सहयोग से उन्होंने ऐसी नर्सरी विकसित की है जिसमें विभिन्न प्रकार के पौधे हैं। कहती हैं कि पति को दिल्ली में फ्लावर डेकोरेशन का कार्य करते देख मन में यह भाव उठा कि क्यों न गांव पर चलकर खुद की नर्सरी तैयार की जाए। जिन फूलों को लोग महंगे दाम पर खरीद कर लाते हैं,उन्हें दूसरों को भी उगाने के लिए प्रेरित किया जाए। यही सोच कर दो वर्ष पहले गांव आ गए। पति एक निजी विद्यालय में नौकरी करने लगे। सुबह-शाम नर्सरी में भी हाथ बंटाते हैं। कहती हैं कि यह पौधे न केवल बाहर की हवा शुद्ध करते हैं बल्कि अगर इन्हें गमले में लगा कर घर के अंदर रखा जाए तो वहां की भी वायु शुद्ध करने में सहायक होते हैं। नर्सरी में तेजपत्ता,दालचीनी,चंदन, हर्रै, नाशपाती,चीकू,मुसम्मी, सेब, चेरी जैसे दुर्लभ पौधों के अलावा सजावटी पौधे भी उपलब्ध हैं। जिन्हें बेचकर सिर्फ इतना पैसा कमाती हैं जिससे नर्सरी का खर्च चल जाए। नीलम की बेटियां व बेटा भी मदद करते हैं। इनकी इस कला से आसपड़ोस की महिलाएं भी काफी प्रभावित हैं। उन्होंने भी इस कार्य को स्वरोजगार से जोड़ लिया है। बगल के गांव की महिलाएं बड़ी संख्या में गमले का निर्माण कर रही हैं। नीलम की नर्सरी के फल-फूल देखते ही बनते हैं।


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