बचपन की मित्रता सबसे पवित्र और प्रगाढ़
मित्रता एक ऐसा धर्म जिसमें कोई असमानता नहीं अनुशासित मित्रता जीवनपर्यंत यादगार रहती है
जागरण संवाददाता, बस्ती : मित्रता भी एक धर्म है। यह दो या उससे भी अधिक व्यक्तियों के बीच का एक अनूठा संबंध है। इसमें खुलापन है, एक दूसरे के प्रति अनन्य प्रेम है। मदद की भावना है। यह एक ऐसा रिश्ता जिसमें द्वेष, क्लेश का स्थान बिल्कुल नहीं है। सिर्फ अपनापन और मिठास है।
सेंट जेवियर्स सीनियर सेकेंड्री स्कूल के प्रिसिपल/प्रबंधक राजीव कुमार ने दैनिक जागरण के संस्कारशाला कार्यक्रम के तहत मित्रता का अनुशासन विषय को कुछ इसी तरह परिभाषित किया। बचपन की दोस्ती सबसे पवित्र और प्रगाढ़ होती है। छात्र जीवन में ही मित्रता की नींव पड़ जाती है। अनुशासित मित्रता का आशय यह है कि पूरी ईमानदारी से एक दूसरे की जरूरत पर लोग काम आए। यह सीखने का अवसर स्कूल में ही मिलता है। अनुशासित मित्रता जीवनपर्यंत यादगार बनती है। इसमें असमानता कहीं नहीं है। आर्थिक एवं प्रतिष्ठित पेशा के आधार पर मित्र का मूल्यांकन नहीं होता है। मित्र अमीर हो या गरीब उसका बराबरी का अधिकार है। बेधड़क, बेहिचक होकर एक मित्र दूसरे मित्र से अपना दुख-सुख बयां कर सकता है। इसीलिए भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की दोस्ती अनंत तक चर्चित है। स्कूल में ही मित्रता का माहौल सृजित
स्कूल में पठन-पाठन के साथ मित्रता का माहौल भी सृजित किया जाता है। बच्चों के भीतर मित्रता का भाव पनपाने के लिए खेल, सामूहिक प्रार्थना, प्रतियोगिता, संगीत, गायन आदि आयोजन कराए जाते हैं। इससे बच्चों में मित्रता की भावना प्रबल होती है। हम शिक्षकों के साथ मिलकर बच्चों को दुर्गुण से दूर रहने की प्रेरणा भी देते हैं। अच्छे आचरण के साथ मित्रता बहुत सार्थक होती है। कभी-कभी दोस्त भी पढ़ाई या तरक्की का मार्ग प्रशस्त कर देता है।
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दोस्ती का बेमिसाल संदेश
सच्चा दोस्त कभी भी धोखा नहीं देता है। हर मोड़ पर वह मित्र के काम आता है। इसके उदाहरण हमारे शास्त्र में भी है। हमारा संदेश है कि प्रत्येक छात्र एक अच्छा दोस्त बनें। मित्र के सुनहरे भविष्य में हरसंभव मदद करें। दोस्त का कर्तव्य है कि वह अपने साथी को अच्छे मार्ग पर ले जाएं। भटकाव की स्थिति में दोस्त का समझाना ज्यादा प्रभावी होता है।