बहुचर्चित एलआइसी लूट कांड के सभी आरोपित बरी
अपर सत्र न्यायाधीश अब्दुल कैयूम की अदालत बहुचर्चित एलआइसी लूट कांड के मामले में सभी आठ आरोपितों को बरी कर दिया है। अदालत ने आरोपितों के पास से दिखाई गई लूट के रुपयों की बरामदगी को संदेहास्पद माना है। भारतीय जीवन बीमा निगम बस्ती के तत्कालीन वरिष्ठ शाखा प्रबंधक राम प्रसाद गुप्ता ने एक मार्च 2003 को कोतवाली में लूट का मुकदमा दर्ज कराया था।
बस्ती: अपर सत्र न्यायाधीश अब्दुल कैयूम की अदालत बहुचर्चित एलआइसी लूट कांड के मामले में सभी आठ आरोपितों को बरी कर दिया है। अदालत ने आरोपितों के पास से दिखाई गई लूट के रुपयों की बरामदगी को संदेहास्पद माना है।
भारतीय जीवन बीमा निगम बस्ती के तत्कालीन वरिष्ठ शाखा प्रबंधक राम प्रसाद गुप्ता ने एक मार्च 2003 को कोतवाली में लूट का मुकदमा दर्ज कराया था। इसमें बताया गया कि 28 फरवरी 2003 को दिन में 11.45 बजे शाखा कार्यालय से 19 लाख 48 हजार 155 रुपये 50 पैसा बैंक में जमा कराने के लिए ले जाया जा रहा था। अधिकारी अश्वनी कुमार वर्मा एवं आज्ञाराम यादव शाखा के ही चपरासी संजय कुमार सैनी और सिक्योरिटी गार्ड हरिहर प्रसाद निवासी भुअर निरंजनुपर कोतवाली बस्ती के साथ रुपयों से भरी अटैची लेकर गेस्ट हाउस के बगल वाले गेट पर पहुंचे ही थे तभी तीन अज्ञात बदमाशों ने सुरक्षा गार्ड को गोली मार दिया। चपरासी के दोनो तरफ कनपटी पर पिस्तौल रख दिया। रुपये से भरी अटैची छीनकर बदमाश रामेश्वरपुरी मोहल्ले की तरफ भाग निकले। उन्होंने गार्ड की बंदूक भी छीन ली थी। मामले की विवेचना के दौरान तत्कालीन निरीक्षक गोपाल तिवारी ने दस लोगों को आरोपित किया। केस डायरी के अनुसार उनके पास से रुपयों की बरामदगी भी की गई थी। मामले में लल्लन दूबे निवासी पिपरा मेघऊ कोतवाली बस्ती, कपिलदेव निवासी डेल्हवा थाना कलवारी, अजय पांडेय निवासी मदही थाना हर्रैया, पटवारी दूबे निवासी भतरिन्हाजोत थाना नगर, विश्वदेव निवासी मंझरिया विक्रम कोतवाली, ओमप्रकाश ओझा निवासी दुबौली मिश्र थाना कप्तानगंज,प्रमोद कुमार पांडेय निवासी मझौवा थाना दुबौलिया और सुरेंद्र तिवारी निवासी नगर बौड़िहार थाना मुंडेरवा,बबलू उर्फ शेषमणि और राम बहोर के विरुद्ध अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया गया। आरोपितों में से राम बहोर की दौरान मुकदमा मृत्यु हो चुकी है। बबलू उर्फ शेषमणि को गत 28 मार्च 2008 को किशोर घोषित कर दिया।
इस तरह बचाव पक्ष की ओर से एडवोकेट रामशरन चौबे, राजेश ¨सह, शरद चतुर्वेदी और रामप्रसाद पांडेय की टीम ने आरोपितों में से आठ के बारे में अदालत में तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि पुलिस ने बरामदगी का कोई स्वतंत्र साक्षी नहीं बनाया है और न ही किसी सभ्रांत व्यक्ति का हस्ताक्षर कराया गया है। किसी एलआइसी कर्मचारी को फर्द का गवाह नहीं बनाया गया। जिसके हाथ से रुपया छीना गया उस कर्मचारी ने भी अपने बयान में कहा कि रुपयों की खास पहचान अंकित नहीं थी। नोट के गड्डियों की जो फोटोग्राफी कराई गई थी उस पर एलआइसी की स्लिप नहीं दिखाई पड़ी। पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने माना कि बरामदगी की कार्रवाई संदिग्ध प्रतीत होती है। साक्ष्य की कड़ियां आपस में जुड़ती नहीं दिख रही हैं। गवाहों के बयानों में विरोधाभास है। न्यायालय ने पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में सभी आरोपितों को संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया।