कैश चेस्ट को अफसर भूले, नहीं कराया सत्यापन
जागरण संवाददाता, बस्ती : बैंकों के जरिये लेनदेन का प्रचलन बढ़ा तो कैश चेस्ट की उपयोगिता घटती गई। स्थिति यह है कि इस बारे में तमाम विभाग के अफसर जानते ही नहीं हैं। कैश चेस्ट का सत्यापन न कराए जाने पर आडिट आपत्ति हुई तो एक दर्जन विभागों को नोटिस जारी कर दी गई।
अंग्रेजों के जमाने से कैश चेस्ट का प्रचलन शुरू हुआ, जो एक दशक पहले तक चलता रहा। हर विभाग में आने और जाने वाले धन के अलावा तमाम बहुमूल्य वस्तुएं कैश चेस्ट में ही रखी जाती रहीं। यहां तक कर्मचारियों के वेतन की धनराशि भी आहरित कर यहीं रखी जाती रही और फिर इसका वितरण किया जाता रहा।
कैश चेस्ट की दो चाभियां होती रहीं एक चाभी विभाग के आहरण वितरण अधिकारी और दूसरी कोषागार के डबल लाक में सुरक्षित रखी जाती थी। ऐसा इसलिए ताकि चाभी गायब होने पर कामकाज प्रभावित न हो सके।
कोषागार के डबल लाक में एक सील्ड पैक्ड में बहुमूल्य वस्तु के रूप में यह चाभी रखी हुई है। इसका प्रत्येक वर्ष सत्यापन कराना होता है। सत्यापन में विभाग को चाभी लेकर जाना होता है और उससे कैश चेस्ट खोलकर यह जांचनी होती है, कहीं चाभी तो नहीं बदल दी गई है। यह प्रक्रिया पूरी करने के बाद वापस चाभी पैकेड में सील्ड कर कोषागार में जमा करना होता है। वित्तीय पुस्तिका खंड-5 भाग एक के प्रस्तर 38 ग के अनुसार इसका सत्यापन साल में एक बार किया जाना अनिवार्य है लेकिन इसका तमाम विभागों द्वारा पालन नहीं किया जा रहा है।
यहां है कैश चेस्ट : खंड विकास अधिकारी राम नगर, सदर, बनकटी, हर्रैया, कप्तानगंज, विक्रमजोत, रुधौली और परसरामपुर के अलावा अधिशासी अभियंता बाढ़ खंड प्रथम, सरयू ड्रेनेज खंड-2, सरयू नहर खंड-एक,अधिशासी अभियंता अनुसंधान एवं नियोजन, अधिशासी अभियंता गुण एवं नियंत्रण तथा सरयू नहर खंड-दो।
यह सही है एक दर्जन विभागों ने कैश चेस्ट का सत्यापन नहीं कराया है। इसको लेकर उनको पत्र लिखा गया है। वार्षिक सत्यापन न किया जाना वित्तीय नियमों के प्रतिकूल है। इसको लेकर महालेखाकार द्वारा आडिट आपत्ति की गई है।
एसपी सिंह, मुख्य कोषाधिकारी