शाहजहांपुर के रोजा शहर का क्या है असली नाम, यहां पढ़ें रोजा नाम पड़ने की दिलचस्प कहानी
British went why not name ब्रिटिश शासन में अंग्रेजों ने कई भवनों व मार्गों का नामकरण अपने शासकों व अधिकारियों के नाम पर कर दिया। कई स्थानों के नाम भी बदल दिए गए। उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जनपद का रोजा भी उनमें से एक है।
बरेली, जेएनएन। British went why not name : ब्रिटिश शासन में अंग्रेजों ने कई भवनों व मार्गों का नामकरण अपने शासकों व अधिकारियों के नाम पर कर दिया। कई स्थानों के नाम भी बदल दिए गए। उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जनपद का रोजा भी उनमें से एक है। महानगर में शामिल हो चुके इस उपनगर का नाम रौसर था, लेकिन उच्चारण सही न होने के कारण अंग्रेज अफसर इसे रोसा (अंग्रेजी में अब भी रोसा ही लिखा जाता है) कहने लगे। जो बाद में रोजा हो गया। उसके बाद रेलवे से लेकर अन्य सरकारी अभिलेखों में अब तक यही नाम दर्ज है। हालांकि जब से यह क्षेत्र महानगर में शामिल हुआ है। यहां के लोग भी चाहते हैं कि क्षेत्र को अंग्रेजों की दी गई पहचान हटनी चाहिए। उनका दिया नाम रोजाबदलकर रोजा का नाम बदलकर किसी महापुरुष, स्वतंत्रता सेनानी या बलिदानी के नाम पर होना चाहिए।
रोसर का अपभ्रंश है रोजाः एसएस कालेज के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डा. विकास खुराना ने बताया कि शाहजहांपुर सन 1803 में ब्रिटिश भारत का अंग बन गया था। जिले में ब्रिटिश सेटलमेंट तेजी से बढ़ा। हालांकि इसका ज्यादातर प्रभाव कैंट व लोदीपुर क्षेत्र में था। अंग्रेजो के प्रशासनिक नियंत्रण के बाद से जिले के कई हिस्सों के नामो में अपभ्रंश पैदा हो गए। रोजा रोसर का ही अपभ्रंश है।
शाहजहांपुर गजेटियर का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि उस समय रोसर गांव की आबादी मात्र 198 थी। अंग्रेजो ने इस जगह के पास ही पांच सौ एकड़ जमीन पर कब्जा कर केरु फैक्ट्री स्थापित कर दी। यहां कई बंगले, पोस्ट ऑफिस, डिस्पेंसरी, क्लब आदि खोले गए। तमाम अंग्रेज अफसर अपने परिवारों के साथ रहने लगे। सत्यप्रकाश महाराज बताते हैं कि रोजा जंक्शन के साथ नगर का नाम हनुमतधाम होना चाहिए। प्रशासन व शासन के स्तर से जो भी प्रक्रिया होती है उसे जल्द से जल्द पूरा कराया जाना चाहिए। हमारे क्षेत्र की पहचान किसी बड़ी शख्सियत पर होनी चाहिए।
जानकी का कहना है कि देश गुलामी से दूर हो गया है। अब अंग्रेजों की दी गई पहचान खत्म होनी चाहिए। शहर में तमाम बलिदानी, स्वतंत्रता सेनानी व संत हुए हैं। उनमें से किसी के भी नाम पर यहां का नामकरण होना चाहिए। अनिल सिंह ने बताया कि बचपन से रोजा नाम सुनता आ रहा हूं, लेकिन यह कैसे पड़ा इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। यह अंग्रेजों का दिया नाम है। इसलिए इसको परिवर्तित कर हनुमतधाम नगर रखा जाना चाहिए। अशोक शर्मा का कहना है कि यह क्षेत्र महानगर का अभिन्न अंग है। औद्योगिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। ऐसे क्षेत्र की पहचान अंग्रेजों के दिए नाम से नहीं होनी चाहिए। यहां के जंक्शन व नगर का नाम किसी स्वतंत्रता सेनानी के नाम से हो।
क्या कहते हैं इतिहासकारः शाहजहांपुर के एसएस कालेज के इतिहास के विभागाध्यक्ष डा. विकास खुराना ने बताया कि अंग्रेजो के रोसर नाम के उच्चारण में स्पष्टता नही थी। इसलिए वे इसे रोजा के नाम से बुलाने लगे। लंदन तक के अखबारों में रोसर को इसी नाम से जाना जाने लगा। वध रुहेलखंड रेल का प्रसार शाहजहांपुर तक हुआ तब यहां स्टेशन के पास पड़ी भूमि का उपभोग कुमायूं-रुहेलखंड तथा अवध-रुहेलखंड के वृहद रेल सेटलमेंट में रोजा रेल सेटेलमेंट के रूप में किया जाता रहा और रेल प्रपत्रों में यही नाम शामिल हो गया। आजादी के इतने सालों बाद भी हम लोग क्षेत्र को इस जगह व जंक्शन को रोजा नाम से जानते है जबकि वस्तुतः इस नाम की कोई जगह थी ही नही।