बीस साल पुराना सिलेबस पढ़ा रहा विश्वविद्यालय
बरेली(जेएनएन)। सिविल या फिर नेट-जेआरएफ और अन्य प्रतियोगी परीक्षा क्वालिफाई करने से रुहेलखं
बरेली(जेएनएन)। सिविल या फिर नेट-जेआरएफ और अन्य प्रतियोगी परीक्षा क्वालिफाई करने से रुहेलखंड विश्वविद्यालय के स्टूडेंट्स इसलिए रह जाते हैं, क्योंकि उन्हें अपडेट किताबें ही पढ़ने को नहीं मिल रहीं। कंप्टीशन की तैयारी में जुटे छात्र दिनरात पढ़ते हैं, फिर भी उन्हें डीयू, जेएनयू, बीएचयू और एएमयू के छात्रों की अपेक्षा सफलता नहीं मिलती है। प्रोफेसर इसकी वजह आउटडेटेड सिलेबस को बताते हैं।
रुविवि के कॉलेजों में एमएससी बॉटनी का करीब 20 साल पुराना सिलेबस पढ़ाया जा रहा है, जबकि बीएससी बायोलॉजी का पाठ्यक्रम भी लगभग दस साल पुराना है। नेट-जेआरएफ के लिहाज से प्रोफेसर मौजूदा कोर्स को गैरजरूरी मानते हैं। उनका तर्क है कि दूसरी यूनिवर्सिटीज में अपडेट कोर्स है। इसलिए हमारे बच्चे मेहनत करने के बावजूद पिछड़ जाते हैं। यही वजह है कि पीजी का छात्र तंग आकर बीएड, बीटीसी करने को मजबूर है। बीएससी बायो टेक्नोलॉजी का सिलेबस 1996 में लागू होने के बाद से आज तक नहीं बदला गया है। यही हाल ¨हदी विषय का है। दुनिया भर में ¨हदी की मांग बढ़ रही है, जबकि कॉलेजों में दसियों साल पुराना कोर्स पढ़ाया जा रहा है। बरेली कॉलेज में बॉटनी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. आलोक खरे कहते हैं कि पुराने पाठ्यक्रम से हम छात्रों का भला नहीं कर सकते। हमें कोर्स बदलना ही पड़ेगा।
ढूंढे नहीं मिलेंगे ¨हदी के विद्वान : बरेली कॉलेज के ¨हदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. एसपी मौर्य कहते हैं कि कोर्स में साहित्य, समाज और भूमंडलीकरण का समावेश हो, ताकि बच्चे कुछ नया सीखें। यही हाल रहा तो पांच-दस साल में क्षेत्र में ¨हदी के विद्वान ढूंढे नहीं मिलेंगे। वो कहते हैं बोर्ड ऑफ स्टडीज के शिक्षक कोर्स को अपडेट करें, यही समाज-छात्रहित में है।
अर्थशास्त्र में एक जैसे दो पेपर : डीयू-जेएनयू के अर्थशास्त्र पीजी कोर्स में दाखिले को लेकर मारामारी मचती है। मगर रुविवि के कॉलेजों में अर्थशास्त्र की सीटें नहीं भरती हैं। रुविवि के बीए फाइनल ईयर में अर्थशास्त्र के इकोनॉमिक्स ऑफ लेस डवलप कंट्री और इकोनॉमिक्स पॉलिसी ऑफ इंडिया ये दोनों एक जैसे विषय पढ़ाए जाते हैं। दोनों का सिलेबस समान है। बीए में इलिमेंट्री स्टेटिक्स और हिस्ट्री ऑफ थॉट्स ये दो पेपर वैकल्पिक विषय कर दिए गए हैं। जबकि एमए में स्टेटिक मैथड पढ़ना अनिवार्य विषय है। बरेली कॉलेज में अर्थशास्त्र की विभागाध्यक्ष डॉ. रीना अग्रवाल कहती हैं कि कोर्स रिवाइज करने की जरूरत है। यही छात्रों के हित में है।
सिविल के लिए बदलाव जरूरी : बरेली कॉलेज में राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ. आरपी यादव कहते हैं कि राजनीतिक विज्ञान बीए और एमए में कोर्स बदला गया है। मगर कंप्टीशन के नजरिये से बदलाव की जरूरत है। बोर्ड ऑफ स्टडीज में इसे रखा जाएगा।
अरसा बीत गया अंग्रेजी का कोर्स बदले : बरेली कॉलेज में अंग्रेजी की विभागाध्यक्ष डॉ. पूर्णिमा अनिल कहती हैं कि जो सिलेबस मेरी मां, मैंने पढ़ा, आज वही मैं छात्रों को पढ़ा रही हूं। कोर्स में मॉडर्न लिटरेचर समेत व्यापक संशोधन की जरूरत है। अपडेट किताबें न पढ़ने की वजह से ही हमारे छात्र नेट-जेआरएफ में पिछड़ते हैं।
किताबें नहीं गाइड-गैस पेपर से पढ़ाई : रुविवि के कॉलेजों में किताबों के बजाय गाइड, गैस पेपर से पढ़ाई हो रही हैं। बकौल डॉ. पूर्णिमा अनिल एमए के छात्र ढंग से विषय तक नहीं लिख पाते हैं। वे पढ़ने नहीं आते, परीक्षा देने की छूट है। सुधार के लिए हर स्तर पर कड़े कदम उठाने की जरूरत है ।
मेहनत से कतराते हैं प्रोफेसर : एक वरिष्ठ प्रोफेसर कहते हैं कि सिलेबस बदलने में मेहनत पढ़ती है। अपडेट चीजें पढ़नी होती हैं। अध्ययन कर कोर्स का प्रस्ताव बनाना पड़ता है। बोर्ड ऑफ स्टडीज में सब सीनियर शिक्षक जाते हैं, इसलिए वे इतना ज्यादा काम करने की स्थिति में नहीं होते।
क्या कहते हैं कुलपति
बोर्ड ऑफ स्टडीज की जिम्मेदारी है कि वे अपडेट चीजें कोर्स में शामिल कराएं। तभी हमारे छात्र सफल होंगे। सभी बोर्ड ऑफ स्टडीज के समन्वयक व डीन से सिलेबस संशोधन के संबंध में बात की जाएगी।
-प्रोफेसर अनिल शुक्ल, कुलपति रुविवि