वन्य पशुओं की बीमारियों के निदान को जुटे वैज्ञानिक
रोगों के निदान के लिए रक्त और अन्य नमूनों को सहेजना तथा प्रयोगशालाओं तक सुरक्षित पहुंचाना बेहद जरूरी है।
जागरण संवाददाता, बरेली : वन और वन्य जीव के लिए कार्य करना बहुत मुश्किल भरा है। उनके रोगों के निदान के लिए रक्त और अन्य नमूनों को सहेजना तथा प्रयोगशालाओं तक सुरक्षित पहुंचाना बेहद जरूरी है। ऐसे में देश भर के पशु चिकित्साविद जानें कि सैंपल कैसे लिया जाए, किसमें लिया जाए, कितनी मात्रा में और कब लिया जाए। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) में वाइल्ड लाइफ हेल्थ मैनेजमेंट एंड कंजर्वेशन : इश्यूज एंड वे फॉरवर्ड विषय पर 15 दिवसीय ट्रेनिंग की शुरूआत के दौरान ये बातें अध्यक्षीय संबोधन में संस्थान निदेशक डॉ. राजकुमार सिंह ने कहीं। ट्रेनिंग में दस राज्यों के राष्ट्रीय उद्यान एवं अभ्यारण्य से नामित किए 20 पशु चिकित्साविद सैंपल इकट्ठा करने की बारीकियां समझेंगे।
वन्य प्राणी केंद्र की बढ़ी जिम्मेदारी
बरेली क्षेत्र के वन संरक्षक पीपी सिंह ने बतौर मुख्य अतिथि कहा कि लगातार बढ़ती आबादी और पक्के रास्तों के चलते वन्य जीव कम हो रहे हैं जबकि घरेलू जानवरों की संख्या बढ़ रही है। अब आइवीआरआइ के वन्यप्राणी केंद्र पर वन्य प्राणियों के रोग अन्वेषण और संरक्षा की जिम्मेदारी है। पाठ्यक्रम समन्वयक और संस्थान के वन्यप्राणी केंद्र के प्रभारी डॉ. एके शर्मा, सह समन्वयक एवं प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एएम पावड़े ने भी संबोधित किया।
यहां के वैज्ञानिक भी देंगे प्रशिक्षण
राष्ट्रीय उद्यान एवं अभ्यारण्य से नामित पशु चिकित्साविद को सैंपल लेने के अलावा पोस्टमार्टम एग्जामिनेशन की अच्छी विधि भी बताई जाएगी। आइवीआरआइ के वैज्ञानिकों के अलावा देहरादून स्थित भारतीय वन्य जीव संस्थान, जबलपुर स्थित स्कूल फॉर वाइल्डलाइफ, फॉरेंसिंक एंड हेल्थ और पिंजौर स्थित बीएनएचएस के वैज्ञानिक भी प्रशिक्षण देंगे।